दप्तर में सहकर्मी से निजी विवाद होने पर कर्मचारी को कोर्ट उठने तक की सजा सुनाई थी। पीएचई विभाग ने कुछ घंटों की सजा को आधार बनाकर कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया था जबकि विवाद सरकारी काम को लेकर नहीं हुआ था। कर्मचारी ने बर्खास्त किए जाने की कार्रवाई को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आपसी विवाद में सजा हो जाने पर इस तरह किसी कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। कर्मचारी की सेवाएं फिर से बहाल करने के साथ ही बर्खास्तगी से अब तक का वेतन भी दिए जाने के आदेश दिए हैं। कर्मचारी रामेंद्र अग्निहोत्री का विवाद दफ्तर में हुआ था।
इस पर सहकर्मी ने रामेंद्र के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया था। वहीं रामेंद्र ने भी क्राॅस एफआईआर कराई थी। पुलिस ने जांच कर रामेंद्र के खिलाफ चालान पेश कर दिया था। रामेंद्र को कोर्ट का समय खत्म होने तक की सजा सुनाई गई थी। इस सजा के आधार पर उसे नौकरी से हटा दिया गया था। रामेंद्र ने अधिवक्ता आनंद अग्रवाल के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
- कर्मचारियों के आपसी विवाद होते रहते हैं, यह कदाचरण की श्रेणी में नहीं आता
जस्टिस विवेक रुसिया की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। याचिका में उल्लेख किया कि दफ्तरों में कर्मचारियों के आपसी विवाद होते रहते हैं। इस तरह के विवाद से विभाग, सरकार को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। ना ही यह कदाचरण की श्रेणी में आता है ना ही मप्र सेवा नियम के विरुद्ध है। एफआईआर में भी कारण आपसी विवाद ही लिखा गया था, लेकिन विभाग ने एक नहीं सुनी और बर्खास्त कर दिया। हाई कोर्ट ने रामेंद्र की याचिका स्वीकार करते हुए विभाग की कार्रवाई को निरस्त कर दिया।
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