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श्राद्ध पक्ष की शुरुआत आज से:तिथियों की घट-बढ़ के चलते पूरे 17 दिन रहेंगे श्राद्ध; विधि-विधान के साथ पितरों का पूजन, अर्चन और तर्पण किया जाएगा

 

फाइल फोटो - Dainik Bhaskar
फाइल फोटो

सोमवार से महालय श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो रही है। इस मौके पर पूरे विधि-विधान के साथ पितरों का पूजन, अर्चन और तर्पण किया जाएगा। सोलह श्राद्ध इस वर्ष तिथियों की घट-बढ़ के चलते पूरे 17 दिन के रहेंगे। 6 अक्टूबर को सर्वपितृ मोक्ष दायिनी आश्विन अमावस्या के दिन श्राद्ध पक्ष का समापन होगा।

पंडित शिवप्रसाद तिवारी के मुताबिक सोमवार से महालय श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो रही है। इस वर्ष तिथियों की घटबढ़ के चलते श्राद्ध 17 दिन के रहेंगे। शास्त्र के अनुसार माना जाता है कि जिस दिन अपराह्न में जो तिथि व्याप्त हो उसी दिन उस तिथि से संबंधित जातक का श्राद्ध किया जाता है।

जैसे दोपहर में तिथि के पूर्ण होने पर संबंधित तिथि वाले जातक का श्राद्ध करना चाहिए। इस वर्ष षष्ठी तिथि दो दिन यानी 26 और 27 सितंबर को दोनों दिन अपराह्न में हैं। ऐसी स्थिति में शास्त्र के अनुसार जिस दिन अपराह्न में तिथि 60 घड़ी से अधिक हो उसी दिन उस तिथि से संबंधित जातक का श्राद्ध करना चाहिए। इस वर्ष अपराह्न में षष्ठी तिथि 27 सितंबर को 60 घड़ी से ज्यादा है। अत: 27 सितंबर को ही षष्ठी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा।

20 सितंबर से अक्टूबर तक रहेंगे श्राद्ध

20 सितंबर - पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध

21 सितंबर - एकम तिथि का श्राद्ध

22 सितंबर – द्वितीया तिथि का श्राद्ध

23 सितंबर - तृतीया तिथि का श्राद्ध

24 सितंबर - चतुर्थी तिथि का श्राद्ध

25 सितंबर – पंचमी तिथि का श्राद्ध

26 सितंबर - इस दिन किसी भी तिथि वाले जातक का श्राद्ध नहीं है

27 सितंबर – षष्ठी तिथि का श्राद्ध

28 सितंबर – सप्तमी तिथि का श्राद्ध

29 सितंबर – अष्टमी तिथि का श्राद्ध

30 सितंबर - नवमी तिथि का श्राद्ध

1 अक्टूबर – दशमी तिथि का श्राद्ध

2 अक्टूबर - एकादशी तिथि का श्राद्ध

3 अक्टूबर – द्वादशी तिथि का श्राद्ध

4 अक्टूबर – त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध

5 अक्टबूर – चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध

6 अक्टूबर – अमावस तिथि का श्राद्ध

इन बातों का भी रखे ध्यान
पंडित तिवारी के अनुसार पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। श्राद्ध सदैव दोपहर के समय करना चाहिए। प्रात:काल एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा जाता है। श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर की जाए तो अच्छा है। क्योंकि पितर-लोक को दक्षिण दिशा में बताया गया है। पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्‌टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो अच्छा है। वहीं केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता हैं।

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