केरल हाईकोर्ट के आदेश पर जीएसटी काउंसिल ने पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की अनमने ढंग से चर्चा जरूर की, लेकिन यह पहले से ही तय था कि कोई भी राज्य और खुद केंद्र इसके लिए तैयार नहीं होगा। मप्र सहित अन्य सभी राज्यों ने इसका विरोध किया और फैसला टाल दिया गया। सबसे बड़ी वजह इससे होने वाली आय है।
जीएसटी एक्ट में अधिकतम टैक्स दर का स्लैब 40 फीसदी (20 फीसदी सेंट्रल और 20 फीसदी स्टेट जीएसटी मिलाकर) का ही है, वहीं केंद्र और राज्य दोनों मिलाकर पेट्रोल की मूल कीमत पर अभी 156 फीसदी और डीजल पर करीब 130 फीसदी टैक्स वसूल रहे हैं। जीएसटी एक्ट के चलते केंद्र और राज्य दोनों इस पर 40 फीसदी से अधिक टैक्स नहीं लगा सकते हैं।
अब अधिक टैक्स वसूलने के लिए रास्ता सेस लगाने का बचता है, लेकिन सेस के लिए नियम है कि यह राज्यों के बीच वितरित होता है, यानी यदि जीएसटी काउंसिल पेट्रोल-डीजल पर सेस लगाती है तो इसमें आई राशि केंद्र के खाते में आने की जगह राज्यों के बीच वितरित हो जाएगी। इससे केंद्र के हिस्से की बढ़ी राशि छूट जाएगी।
ऐसे में केंद्र और राज्य दोनों ने ही इससे दूरी बना ली है। अब यदि आगे भविष्य में जीएसटी में इन्हें लाना है तो एकमात्र रास्ता है कि संसद में जीएसटी एक्ट में बदलाव कर अधिकतम टैक्स की दर को बढ़ाकर 150 फीसदी किया जाए, तभी वर्तमान आय को बनाकर रखा जा सकता है।
11 साल में राज्य की आय दस हजार करोड़ रु. बढ़ी
साल 2009-10 में पेट्रोल-डीजल से मप्र की आय 2550 करोड़ रुपए थी, जो साल 2020-21 में कोविड के दौर में भी बढ़कर 12 हजार करोड़ के पार हो गई। इस तरह 11 साल में पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने से मप्र की आय 9450 करोड़ बढ़ गई। मप्र के खुद के आय के स्रोत के रूप में पेट्रोल-डीजल से 12 हजार करोड़ तो आबकारी से दस हजार करोड़ और करीब छह हजार करोड़ पंजीयन से आय होती है। जीएसटी से सालाना करीब 27 हजार करोड़ आय होती है।
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