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वराह जयंती 9 को:वराह जयंती 9 को विष्णुजी का तीसरा अवतार है वराह, दैत्य हिरण्याक्ष से पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ने लिया ये रूप

 

  • वराह अवतार के जरीये ही मानव शरीर के साथ भगवान पहली बार धरती पर आए, उनका मुंह जंगली सुअर का और शरीर इंसानी था

भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती मनाई जाती है। माना जाता है इस दिन भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नाम के दैत्य को मारा था। वराह जयंती 9 सितंबर, गुरुवार को है। इस मौके पर सुख-समृद्धि की कामना से भगवान विष्णु की विशेष पूजा के साथ व्रत और उपवास किए जाते हैं। साथ ही विष्णु मंदिरों में भजन-कीर्तन भी किए जाते हैं।

भगवान विष्णु का तीसरा अवतार
भगवान विष्णु ने कुल 24 अवतार लिए हैं। मत्स्य और कश्यप के बाद तीसरा अवतार है वराह। वराह यानी शुकर। इस अवतार के माध्यम से मानव शरीर के साथ परमात्मा का पहला कदम धरती पर पड़ा। मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसानी था। उस समय हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर कब्जा कर पूरी पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया था।

हिरण्याक्ष यानी दूसरे के धन पर नजर रखने वाला
हिरण्य मतलब स्वर्ण यानी सोना और अक्ष मतलब आंखें। इसका अर्थ है कि जिसकी आंखें हमेशा दूसरे के धन पर लगी रहती हों, वो हिरण्याक्ष है। इस नाम का दैत्य भी ऐसा ही था। उसने पूरी धरती पर राज करने, उसे जितने के लिए लोगों को मारना शुरू कर दिया था। संतो को परेशान करने लगा था। इस दैत्य स्वभाव का नाश करने के लिए ही भगवान ने वराह रूप धारण किया।

वराह अवतार से जुड़ी कथा
पुराने समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया।

अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे धरती को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष ने ये देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में युद्ध हुआ। आखिरी में हिरण्याक्ष मर गया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।

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