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किसी भी बात की अधिकता नहीं होनी चाहिए, जीवन में संतुलन होना बहुत जरूरी है

 

कहानी  - ज्ञान प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक मेहनत लगती है और इसमें समय भी बहुत लगता है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुछ तय सीढ़ियां हैं। एकदम छलांग मारकर ज्ञान हासिल नहीं कर सकते। गौतम बुद्ध को भी इस बात का अनुभव हुआ था।

राजकुमार सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा, पुत्र राहुल और राजमहल को छोड़कर जंगल की ओर निकल गए थे। सिद्धार्थ ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे जो आत्मज्ञान हो। वे आत्मज्ञान हासिल करने के लिए बहुत प्रयास कर रहे थे। कई प्रयासों के बाद उन्हें ज्ञान और बोध का अंतर समझ आया।

एक दिन वे जंगल में बैठे थे। उस समय कुछ महिलाएं गीत गाते हुए बुद्ध के सामने से जा रही थीं। गीत के बोल और अर्थ ये थे कि सितार के तार न ढीले हों और न ही बहुत ज्यादा खिंचे हुए होना चाहिए। अगर सितार के तार ढीले होंगे तो सुर बिगड़ जाएंगे और खिंचे होने में तार टूटने का डर रहता है।

महिलाओं के गीत की ये पंक्तियां सिद्धार्थ ने सुनी तो उन्हें ज्ञान नहीं बोध प्राप्त हो गया। ज्ञान यानी Knowledge और बोध को Cognition कह सकते हैं। बोध अचानक आता है और जब आता है तो गहराई से आता है। इन पंक्तियों से वे समझ गए कि ये बात संतुलन के लिए कही जा रही है।

सीख - जीवन में हर बात का संतुलन होना जरूरी है। न तो बहुत ज्यादा वैराग्य होना चाहिए और न ही बहुत ज्यादा भोग होना चाहिए। अगर इन बातों में संतुलन नहीं होगा तो जीवन में अशांति बनी रहेगी।



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