कहानी - एक बार श्रीकृष्ण पर ये आरोप लगा कि उन्होंने स्यमंतक मणि चुराई है और जिस सत्राजित की वो मणि थी, उसके भाई प्रसेनजित की हत्या कर दी है। श्रीकृष्ण पर चोर और हत्यारा होने का कलंक लग गया था।
श्रीकृष्ण ने जंगल जाकर वो मणि खोज ली थी। एक शेर प्रसेनजित को मारकर खा चुका था। जामवंत से श्रीकृष्ण मणि लेकर आए और सत्राजित को सौंप दी।
सत्राजित द्वारिका के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे सूर्य देव के उपासक थे। सूर्यदेव ने सत्राजित से प्रसन्न होकर स्यमंतक मणि दी थी। ये मणि हर रोज 20 तोला सोना देती थी। श्रीकृष्ण ने वो मणि राजकोष के लिए मांगी थी, लेकिन सत्राजित ने मणि के लिए मना कर दिया था। इस वजह से मणि खोने पर सत्राजित को श्रीकृष्ण पर संदेह हुआ था।
जब श्रीकृष्ण ने मणि लौटाई तो सत्राजित को अपनी गलती पर पछतावा हुआ था। सत्राजित ने श्रीकृष्ण से कहा, 'मुझसे भूल हो गई है। मैं भूल का प्रायश्चित करना चाहता हूं। मेरी एक बेटी है सत्यभामा, मैं चाहता हूं कि आप उससे विवाह कर लें। मैं ये मणि आपको दहेज में दूंगा।'
श्रीकृष्ण ने कहा, 'विवाह तो मैं सत्यभामा से कर लूंगा, लेकिन मैं मणि दहेज में नहीं लूंगा।'
अगर विवाह प्रसंग में धन अधिक महत्वपूर्ण हो जाए तो विवाह संबंध गड़बड़ा सकते हैं। दहेज एक ऐसी बीमारी है जो समाज में कई परिवारों को बर्बाद कर देती है। श्रीकृष्ण दहेज विरोधी थे।
सीख - हमारे समाज में आज भी जहां दहेज का लेन-देन हो रहा है, वहां इस प्रथा को बंद करना चाहिए। न तो कन्या का कोई मोल है और न ही पुत्र का। विवाह संबंध समझ से और समानता से होना चाहिए, न कि दहेज की सौदेबाजी से।
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