कहानी - अंग्रेजी नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ बीमार हो गए थे। इलाज करने वाले डॉक्टर्स ने उनसे कहा, 'आप कमजोर हो गए हैं, बीमारी आप पर हावी हो चुकी है। अगर आप जीवित रहना चाहते हैं तो अंडा, मांसाहार अपने खाने में शामिल करें। इन चीजों से आप ठीक हो सकते हैं।' उनका जीवन दांव पर लगा था।
साहित्यकार और मानवतावादी जॉर्ज बर्नार्ड शॉ शाकाहारी थे। डॉक्टर्स को लगा था कि मामला जीवन का है तो मांसाहार के लिए हां कर देंगे, लेकिन बर्नार्ड शॉ तो साहित्यकार थे। हर गतिविधि की एक पटकथा लिखा करते थे।
बर्नार्ड शॉ ने डॉक्टर्स से कहा, 'भले ही जीवन चला जाए, लेकिन मैं मांसाहार नहीं करूंगा।'
ये सुनकर डॉक्टर्स ने कहा, 'फिर तो आपके जीवन की उम्मीद करना बेकार है।'
बर्नार्ड शॉ ने अपने सचिव को बुलाकर कहा, 'वकील से मेरी वसीयत तैयार करवा दो। उसमें लिखो कि मेरी मृत्यु तय है तो मरूंगा। मृत्यु के बाद शमशान तक मेरी शवयात्रा में और कोई जाए या न जाए, लेकिन कुछ प्राणी जरूर जाने चाहिए। चार पैर वाले जानवर, श्वान, संभव हो तो मछलियां। वे सारे जानवर जो मूक हैं, जिन्हें लोग काटकर खाते हैं, वो सभी प्राणी मेरी शवयात्रा में शामिल हों। हो सके तो उनके गले में एक-एक तख्ती टांगना और उस पर लिखना कि हमें प्रेम करने वाला, हमारी रक्षा करने वाला इंसान चला गया। ईश्वर उसे शांति प्रदान करें।' बर्नार्ड शॉ की मृत्यु के बाद ऐसा हुआ भी। एक साहित्यकार अपनी मृत्यु और शवयात्रा से भी समाज को एक संदेश दे गया।
सीख - हम सब इंसान हैं इसलिए हमें अपनी भूख मिटाने के लिए बेजुबान जानवरों की हत्या नहीं करनी चाहिए।
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