- समाधि का अर्थ अक्सर मृत्यु से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन समाधि एक ऐसी आध्यात्मिक अवस्था है जिसमें आप हर चीज़ को एक ही जैसा देखने लगते हैं...
समाधि शब्द को अधिकतर ग़लत समझा गया है। लोग समाधि को मौत जैसी कोई परिस्थिति मान लेते हैं। समाधि शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है- ‘सम’ और ‘धी’। ‘सम’ का मतलब है एक जैसा होना, और ‘धी’ का मतलब बुद्धि है। अगर आप बुद्धि के एक समान स्तर पर पहुंच जाएं, जहां आप बुद्धि से कोई फ़र्क नहीं करते, हर एक चीज़ को एक जैसा देखते हैं, तो उसे समाधि कहते हैं। बुद्धि का मूल स्वभाव है अंतर बनाना, फ़र्क करना, दो चीज़ों को अलग-अलग देखना। आप एक व्यक्ति और एक पेड़ में इसीलिए फ़र्क कर सकते हैं, क्योंकि आपकी बुद्धि काम कर रही है। ये फ़र्क करने का गुण हमारे जीवित रहने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आपको कोई पत्थर तोड़ना है तो आपको उस पत्थर और अपनी उंगली में फ़र्क समझना होगा, नहीं तो आप अपनी उंगली तोड़ लेंगे। फ़र्क करने का गुण वो साधन है जो आपके शरीर की हर कोशिका में मौजूद जीवित रहने की इच्छा को सहयोग देता है और उसे चलाता है।
अगर आप इस बुद्धि के परे चले जाते हैं तो आप समबुद्धि वाले हो जाते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी फ़र्क करने की क़ाबिलियत ख़त्म हो जाती है। अगर ये ख़त्म हो जाए तो आप पागल हो जाएंगे। समाधि की अवस्था में भी आपकी फ़र्क करने वाली बुद्धि अपनी सही अवस्था में होती है पर साथ ही, आप इसके परे चले गए होते हैं। आप कोई फ़र्क, कोई अंतर नहीं कर रहे, आप बस वहां हैं और जीवन को उसका सही काम करते हुए देखते हैं। जिस पल में आप बुद्धि को छोड़ देते हैं या उससे परे चले जाते हैं, तो फिर कोई फ़र्क नहीं रह जाता। हर चीज़ एक हो जाती है, पूर्ण बन जाती है, जो एक वास्तविकता है। समाधि, सम होने की, हर परिस्थिति में एक जैसा होने की, हर चीज़ को एक जैसा देखने की वो अवस्था है, जिसमें बुद्धि अपने फ़र्क करने के सामान्य काम के परे चली जाती है। इस अवस्था में कोई समय या स्थान नहीं रहता। समय और स्थान ये आपके मन की रचनाएं हैं। जब आप मन की सीमितता के परे चले जाते हैं तो समय और स्थान, आपके लिये, अस्तित्व में ही नहीं रहते। जो यहां है, वो वहां है। जो अब है, वो तब भी था। आपके लिए कोई भूत या भविष्य नहीं रह जाता, सब कुछ यहीं है, इसी पल में। आपको लग सकता है कि कोई व्यक्ति तीन दिनों से समाधि में है, पर उनके लिए ये बस कुछ ही पलों की बात है। सारा अस्तित्व, सृष्टि-रचना के कई सारे प्रकार तभी तक हाज़िर हैं, जब तक फ़र्क करने वाली बुद्धि है। जिस पल आप अपनी बुद्धि को विसर्जित कर देते हैं, सब कुछ उस एक में ही लीन हो जाता है।
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