कहानी - राजकोट में काठियावाड़ प्रजा परिषद का एक बड़ा अधिवेशन हो रहा था। मंच पर देश के बड़े-बड़े राजनेता बैठे हुए थे और उनमें महात्मा गांधी भी थे।
महात्मा गांधी उस समय प्रसिद्ध हो चुके थे। कई लोग गांधी जी को देखने और सुनने आए हुए थे। मंच के सामने बहुत सारे लोग बैठे थे। मंच पर बैठे गांधी जी की नजर एक बूढ़े व्यक्ति पर पड़ी।
गांधी जी ने मंच पर बैठे हुए लोगों से धीरे से कुछ कहा। उन्होंने कहा कि अगर आपकी अनुमति हो तो मैं मंच से नीचे उतरकर उन सज्जन के पास बैठना चाहता हूं।
ये बात सुनकर मंच पर बैठे लोगों ने कुछ कहा नहीं, क्योंकि सभी जानते थे कि गांधी जी बिना सोचे-विचारे कोई काम नहीं करते हैं तो कुछ अलग ही करना चाहते होंगे।
गांधी जी मंच से उतरे और एक कोने में बैठे बूढ़े व्यक्ति के पास पहुंचे। उन्होंने उस बूढ़े को प्रणाम किया और सीधे उनके चरणों में जाकर बैठ गए। अब सभी गांधी जी को देखने लगे। वह बूढ़ा व्यक्ति भी घबरा गया।
गांधी जी ने उस बूढ़े से कहा, 'आपने मुझे पहचाना? मैं मोहनदास।'
बूढ़े व्यक्ति ने कहा, 'मैं तो तुम्हें पहचान गया, लेकिन तुम भी मुझे पहचान गए?'
गांधी जी बोले, 'हां, आपने प्राथमिक कक्षा में मुझे पढ़ाया है। आप मेरे शिक्षक रहे हैं और आपकी शिक्षा मैं कभी भूल नहीं सकता। आज जब मंच से मैंने आपको देखा तो मैं खुद को रोक नहीं सका, मैं यहां आ गया। आपके चरणों में बैठकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।'
शिक्षक ने कहा, 'आप बहुत बड़े व्यक्ति हो गए हैं, आपको यहां बैठना शोभा नहीं देता है।'
गांधी जी बोले, 'आप मुझे बड़ा मान रहे हैं, ये आपका बड़प्पन है, लेकिन मैं आपको बड़ा मानूं, ये मेरा धर्म है। आपके चरणों में बैठकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। इतनी सकारात्मकता मिल रही है, जो सिर्फ गुरु के चरणों में मिल सकती है।'
उस दिन हमने देखा कि गांधी जी इतने महान क्यों हैं?
सीख- अपने गुरु, अपने माता-पिता, शिक्षक और बड़े-बूढ़ों का सम्मान करना चाहिए। हम सार्वजनिक रूप से कितने भी प्रसिद्ध हो जाएं, लेकिन बड़ों के सामने झुकने में शर्म नहीं करनी चाहिए।
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