कहानी - गौतम बुद्ध से जुड़ी घटना है। उस समय शाक्यों और कोलियों के बीच पानी को लेकर विवाद चल रहा था। पानी रोहिणी नदी का था। दोनों ही राज्य खुद इस नदी के पानी का उपयोग करना चाहते थे, लेकिन दूसरे राज्य को पानी नहीं देना चाहते थे।
विवाद इतना बढ़ गया कि युद्ध की नौबत आ गई। दोनों राज्यों की ओर से नारे लगाए जा रहे थे कि खून बहा देंगे, लेकिन पानी नहीं देंगे। उस समय गौतम बुद्ध इन राज्यों की ओर से गुजर रहे थे। उन्होंने सभी को लड़ता देखा तो वे वहां रुक गए।
बुद्ध ने सभी लोगों से पूछा, 'क्या बात है, आप सब आपस में लड़ क्यों रहे हैं?'
लोग नारे लगा रहे थे कि खून बहा देंगे। बुद्ध ने पूछा, 'खून तो बहा दोगे, लेकिन ये तो बताओ किसके लिए खून बहा दोगे?'
लोगों ने जवाब दिया, 'नदी के पानी के लिए।'
बुद्ध ने पूछा, 'आप सभी बताइए, पानी का क्या मूल्य है?'
सभी बोले, 'पानी का तो कोई मोल नहीं है, पानी तो पानी है।'
बुद्ध ने फिर पूछा, 'बताइए योद्धा के खून का क्या मोल है?'
सभी लोग एक-दूसरे को देखने लगे, लेकिन कोई कुछ बोला नहीं। तब बुद्ध ने कहा, 'इंसान का खून बहुत मूल्यवान है। कम से कम पानी के लिए तो इसे नहीं बहाना चाहिए।'
ये बात दोनों राज्यों के लोग समझ गए और युद्ध वहीं खत्म हो गया।
सीख - ये कहानी हमें समझा रही है कि आज के समय में भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए इंसान आपस में लड़ते हैं, लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि हमारे शरीर की अपनी उपयोगिता है। हमारे शरीर का खून, इसका एक-एक अंग बाहर की हर चीज से ज्यादा मूल्यवान है। इसलिए सुख-सुविधाओं की चीजों के लिए किसी इंसान को मानसिक और शारीरिक रूप से नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
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