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चतुर्दशी पर इंदौर की 'अनंत' यादें:इमरजेंसी में भी नहीं थमा था झांकियों -का दौर, लेकिन कोरोना ने लगाया ब्रेक; पुरानी तस्वीरों में देखिए

यह दूसरा मौका है, जब अनंत चतुर्दशी पर इंदौर में झांकियां नहीं निकलेंगी। रथ जैसी सजीं छोटी-बड़ी गाड़ियां नहीं होंगी। गाड़ियों में हाथ से गढ़े गए पुतले, 40 वॉट से लेकर 100 वॉट के बल्ब की झालरें, रात में टिमटिमाती-झिलमिलाती रंगीन रोशनी, बैंड के शोर में अपनी आवाज तक का सुनाई न देना... वो रतजगा ...वो धूम ...और इसी बीच कहीं बारिश हो जाए तो झांकियों को बचाने के लिए पन्नियां लेकर दौड़ पड़ना... मगर इस साल भी ऐसा कुछ नहीं होगा। वजह है- कोरोना।

इंदौर में 1975 से 1977 तक इमरजेंसी के दौर में भी झांकियां निकालीं गईं, लेकिन कोरोना ने इस पर ब्रेक लगा दिए। यह 98वां साल है। इससे पहले 97वें साल (2020) में भी कोरोना के कारण झांकियां नहीं निकल सकीं थीं। झांकियों का 97 साल का इतिहास समेटे इंदौर में हुकुमचंद मिल ने 1924 में सबसे पहले झांकी निकाली थी। वक्त के साथ दूसरी मिल भी उत्सव का हिस्सा बनती गईं और कारवां चल पड़ा। इन 97 साल में झांकियों ने बैलगाड़ी से गाड़ियों तक का सफर तय किया। लालटेन, गैस बत्ती की जगह इलेक्ट्रिक लाइटिंग ने ले ली।

1985 में बनाई गई झांकी। - फाइल
1985 में बनाई गई झांकी। - फाइल

हुकुमचंद मिल: इंदौर का पहला गणेशोत्सव, पहली झांकी
इंदौर में सबसे पहले सेठ हुकुमचंद ने 1914 में गणेश प्रतिमा विराजित की। उन्होंने जब मिल चालू की, तभी से मिल में गणेशोत्सव मनाया जाने लगा। इसके 10वें साल 1924 में अनंत चतुर्दशी पर झांकियां निकालने की परंपरा इंदौर में यहीं से शुरू हुई। हुकुमचंद मिल गणेश उत्सव समिति के पदाधिकारी नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि 1924 में सेठ हुकुमचंद ने बैलगाड़ी पर सबसे पहली झांकी निकाली। रोशनी लालटेन से की। झांकी मिल से कृष्णपुरा पुल तक निकाली गई थी। हुकुमचंद मिल का यह 98वां साल है। वक्त के साथ झांकियों का स्वरूप भी बदलता गया।

नगर निगम-IDA का सहयोग
नरेंद्र ने बताया पहले झांकी बनाने के लिए लोगों से सहयोग लेते थे। लोग अब भी सहयोग देते हैं, लेकिन इसमें नगर निगम और IDA (इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी) की ओर से भी मदद मिलने लगी है। अगर इस बार झांकी की अनुमति मिलती तो वैक्सीनेशन का संदेश देती झांकी बनाते।

निर्णायक मंडल के सामने होती है झांकियों-अखाड़ों की प्रस्तुति। ईनाम दिए जाते थे। - फाइल
निर्णायक मंडल के सामने होती है झांकियों-अखाड़ों की प्रस्तुति। ईनाम दिए जाते थे। - फाइल

मालवा मिल: नवग्रह झांकी की अब भी चर्चा
मालवा मिल गणेशोत्सव समिति का यह 88वां साल है। हुकुमचंद की झांकी निकलने के करीब 10 साल बाद ही मालवा मिल की भी झांकी बनने लगी। समिति अध्यक्ष कैलाश कुशवाह ने बताया कि 1972 से वह झांकियां बनवा रहे हैं। 300 से ज्यादा कलाकार और कर्मचारी 3 महीने पहले ही तैयारी शुरू कर देते हैं। हमारी कोशिश होती है झांकियों से समाज को संदेश देना। यही वजह है कि इन 33 सालों में मिल को कई बार पहला, दूसरा और तीसरा पुरस्कार मिल चुका है। नवग्रह की रथ वाली झांकी अब तक की सबसे चर्चित झांकी है।

6 से 7 लाख का खर्च
मालवा मिल 2003 में बंद हो गई। लेकिन, झांकी बराबर बनाई जाती रही है। कैलाश बताते हैं झांकी बनाने में अब 6 से 7 लाख का खर्च आता है। लोगों के अलावा IDA, नगर निगम, विधायक रमेश मेंदोला की मदद से कोई मुश्किल नहीं आती।

चतुर्दशी की रात के बाद सुबह 7 बजे तक निकलती थी झांकियां। - फाइल
चतुर्दशी की रात के बाद सुबह 7 बजे तक निकलती थी झांकियां। - फाइल

स्वदेशी मिल: 1960 के बाद गाड़ियों का चलन
स्वदेशी मिल गणेश उत्सव समिति के अध्यक्ष कन्हैयालाल मरमट ने बताया कि झांकी निकालते हुए 91 साल हो गए हैं। पहले बैलगाड़ी पर झांकी निकाली जाती थी। 1960 के बाद गाड़ियों का चलन शुरू हुआ और छोटी-छोटी गाड़ियों पर 10 से 12 फीट लंबी झांकियां निकाली जाने लगे। इसके बाद झांकियों का और स्वरूप बदलता गया और अब 40-40 फीट की गाड़ियों पर झांकियां निकाली जाने लगी।

कालका माता पर बनाई गई झांकी। -फाइल
कालका माता पर बनाई गई झांकी। -फाइल

कल्याण मिल: मजदूर देते थे एक दिन का वेतन
कल्याण मिल गणेश उत्सव समिति के अध्यक्ष हरनाम सिंह धारीवाल ने बताया कि झांकियां निकालते हुए 87 साल हो गए हैं। 1950 के पहले बैलगाड़ियों को सजाया जाता था। कंडिल लगाए जाते थे। बैलगाड़ियों पर भजन मंडिलयां भजन गाते हुए निकलतीं थी। इसके बाद गाड़ियों का दौर आया। आस्था ऐसी कि 1977 में इमरजेंसी के वक्त भी झांकियां निकाली गईं। तब रात 12 से पहले झांकियां वापस मिलों में पहुंचा दी गईं।राजबाड़ा से झांकियों को वापस लेकर आए थे। 1980 तक गणेश उत्सव में मिल में बड़े-बड़े आयोजन हुआ करते थे। मिल जब चालू रहती तो मजदूर झांकी बनाने के लिए एक दिन का वेतन देते थे।

महंगाई को डायन बताती इस थीम की झांकी ने खूब वाह-वाही बटोरी थी। - फाइल
महंगाई को डायन बताती इस थीम की झांकी ने खूब वाह-वाही बटोरी थी। - फाइल

राजकुमार मिल: कर्मचारी बनाते थे झांकी
राजकुमार मिल गणेश उत्सव समिति के अध्यक्ष कैलाश ठाकुर ने बताया कि झांकी निकालते हुए 78 साल हो चुके हैं। जब मिल चालू थी, तब झांकी मिल के कर्मचारी और कलाकार मिलकर बनाते थे। झांकी बनाने में मिल से ही कपड़े का इस्तेमाल होता था। मैनेजमेंट के लोग खुद इसमें ध्यान देते थे। बाद में जब मिल बंद हुई तो 2001 में लोगों, दुकानदारों और जनप्रतिनिधियों का सहयोग मिला और 1 लाख जमा हो गए। इसके बाद IDA, नगर निगम भी मदद करने लगा।

राजकुमार मिल की इस झांकी को पहला पुरस्कार मिला था। - फाइल
राजकुमार मिल की इस झांकी को पहला पुरस्कार मिला था। - फाइल

होप टेक्सटा : मुंबई तक से देखने आते थे लोग
होप टेक्सटाइल लिमिटेड श्री गणेशोत्सव समिति के सलाहकार श्यामसुंदर यादव के मुताबिक अनंत चतुर्दशी पर झांकी निकालते हुए 72वां वर्ष है। इंदौर की झांकियों को देखने के लिए मुंबई से भी लोग आते थे। एक झांकी कलाकार आरडी जरिया ने होप टेक्सटाइल के लिए झांसी की रानी की झांकी बनाई थी। इस झांकी को तीनों पुरस्कार मिले थे। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। 15 साल से पुरस्कार की दौड़ में नहीं रहते। अब कुछ साल से अनवर नाम का कलाकार उनके यहां झांकी बनाता है।

लोग झांकियां देखने के लिए पहले से जगह घेर लेते थे। -फाइल
लोग झांकियां देखने के लिए पहले से जगह घेर लेते थे। -फाइल
कॉमन वेल्थ गेम घोटाले की थीम पर बनाई गई झांकी। - फाइल
कॉमन वेल्थ गेम घोटाले की थीम पर बनाई गई झांकी। - फाइल

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