इन दिनों अफगानिस्तान में जो कुछ चल रहा है, वह इतना अधिक बर्बर है कि विकासवाद से हमारा विश्वास ही डगमगा जाए। क्या अफगानिस्तान का कोई भी मानव सुख-चैन की नींद ले पा रहा है? जंगलराज में भी ऐसा कदापि नहीं हो सकता। 'शाकुंतलम' का प्रारंभ ही निर्भय चरते आश्रममृगों से होता है। इन हिरणों के लिए वनविहार करने आए राजा दुष्यंत को ऋषि कण्व के आश्रम का एक साधक कहता है- ये हिरण तो आश्रममृग हैं, इनकी हत्या नहीं की जा सकती।
पर्यूषण के इन पवित्र दिनों में भगवान महावीर का स्मरण होता रहा है। भगवान महावीर का सबसे बड़ा अवदान क्या है? मानव के अलावा अन्य प्राणियों के जीने के मौलिक आधिकारों की बात उन्होंने आज से ढाई हजार साल पहले की थी। हमारे कॉलेज में बायोलॉजी के प्राध्यापक 'एनिमल किंगडम' शब्द का प्रयोग करते। अब एक नया शब्द प्रयोग में आने लगा है, 'एनिमल रिपब्लिक'। मानव होने का हमारा अभिमान इतना अधिक वजनदार है कि मानव से इतर सभी जीव हमें तुच्छ लगते हैं। उन जीवों को मारा जा सकता है, काटा जा सकता है, खाया जा सकता है, पिंजरे में कैद किया जा सकता है, जंजीरों से बांधा जा सकता है, हल और बैलगाड़ी में जोता जा सकता है, बार-बार अंकुश का वार सहने के लिए मजबूर किया जा सकता है। युद्ध में हाथी-घोड़े के रूप में बिना किसी बात पर उनकी जान ली जा सकती है। आखिर इंसानों को यह अधिकार दिया किसने? अभी तक तो हम मानवाधिकार की बात फैशन के नाम पर करते आए हैं।
किसी भी बड़े शहर में रात को सेकंड शो फिल्म देखकर सुरक्षित घर लौटती युवती को देखकर माता-पिता को आश्चर्य नहीं होगा, ऐसा सभ्य समाज हम कब देख पाएंगे? स्टालिन ने एक बार कहा था- बीमारी में इंसान मर जाता है, तो उसे मृत्यु माना जाता है, परंतु जो युद्ध में मारा जाए, तो उसे 'स्टेटिस्टिक्स' कहा जाएगा। स्टालिन के अनुसार वह केवल एक आंकड़ा होता है। अफगानिस्तान में इन दिनों दो पैर के जानवर जो जुल्म ढा रहे हैं, वह इतिहास में काले अक्षरों से लिखा जाएगा। उन्हें जानवर कहना भी जानवरों का अपमान है। विश्व में कुछ लोगों ने करुणा के स्तर को काफी गिरा दिया है। न जाने कितनी नारियों पर अनाचार हुए हैं? न जाने कितने मासूमों ने अपने सिर से माता-पिता का साया ही खो दिया है। कितनी ही बेटियां तालिबानी राक्षसों के हत्थे चढ़ गईं। उन बेटियों की जगह अपनी बेटी को रखकर देखने की कल्पना ही कर लो तो आप अंदर तक दहल जाएंगे।
सरकार भले ही शिकार पर प्रतिबंध लगा दे, पर कतलखाने बंद नहीं करवा सकती। अफगानिस्तान में यही हो रहा है। वहां जो बर्बरता हो रही है, उसे कोई भी सभ्य इंसान जायज नहीं ठहरा सकता। तालिबानियों ने आज महिलाओं को हर तरह से गुलाम बना रखा है। हमारे देश के एक लब्धप्रतिष्ठ शायर व लेखक ने हमारे यहां के ही एक सांस्कृतिक संगठन की तुलना तालिबान से की है जो उचित नहीं है। आखिर बकासुर की तुलना भीम से हो सकती है भला? उनके लाखों-करोड़ों प्रशंसक रहे हैं, लेकिन उनके इस बयान ने उनके प्रशंसकों को निराश ही किया है।
यहां शिवाजी महाराज का एक किस्सा सुनाना और सुनना प्रासंगिक रहेगा। जब उनके सैनिक सूरत पहुंचे, तब वे एक मोहल्ले में गए। वहां सैनिकों ने एक घर में प्रवेश किया, तो अकेली रहने वाली महिला भयभीत हो गई। तब उनके सैनिकों ने कहा- माताजी! आप ज़रा भी न घबराएं। हम यहां से केवल धन ले जाएंगे, आपको हाथ भी नहीं लगाएंगे। हमारे शिवाजी महाराज ने हमें सख्त आदेश दिया है कि किसी भी माता या बहन पर किसी भी तरह का अत्याचार न किया जाए।
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