कहानी - कोसलराज अपनी दानवीरता और प्रजा प्रेम के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। काशीराज उनकी प्रसिद्धि से बहुत ईर्ष्या करते थे। इस नफरत की वजह से काशीराज ने कोसलराज के राज्य पर पूरी शक्ति के साथ आक्रमण कर दिया।
अचानक हुए इतने शक्तिशाली आक्रमण का सामना कोसलराज की सेना नहीं कर पाई और वह पराजित हो गए। किसी तरह कोसलराज ने अपने प्राण बचाए और वे जंगल की ओर भाग गए।
काशीराज ने घोषणा कर दी, 'जो व्यक्ति कोसलराज को पकड़कर लाएगा, उसे बहुत बड़ी संपत्ति उपहार में दूंगा।'
कोसलराज जंगल में भटक रहे थे। कुछ समय के बाद एक दिन कोसलराज को एक व्यक्ति मिला। वह धन की कमी की वजह से बहुत दुखी था और आत्महत्या करने की सोच रहा था। कोसलराज ने उससे पूछा, 'तुम मरना क्यों चाहते हो?'
दुखी व्यक्ति ने कहा, 'मुझे संपत्ति की बहुत आवश्यकता है। मेरे जीवन की कुछ प्राथमिकताएं हैं। मैं जा रहा हूं कोसलराज के पास। मैंने सुना है, वे मेरी मदद कर सकते हैं।'
उस व्यक्ति को ये मालूम नहीं था कि कोसलराज युद्ध में हार चुके हैं और वह उन्हें पहचानता भी नहीं था। कोसलराज ने उससे कहा, 'चलो मेरे साथ।'
कोसलराज उस व्यक्ति को लेकर भरे दरबार में पहुंचे, वहां काशीराज सिंहासन पर बैठे थे। कोसलराज ने कहा, 'आप मुझे खोज रहे हैं, मैं कोसलराज हूं। इस समय मेरी वेश-भूषा साधु-संतों की है, क्योंकि मैं जंगल में भटक रहा था। इस व्यक्ति को धन की आवश्यकता है। ये मेरे राज्य का व्यक्ति है और इसे अपने राजा पर बड़ा भरोसा है। मैं आज राज गद्दी पर नहीं हूं, लेकिन मैं इसका भरोसा तोड़ना नहीं चाहता। जो धन राशि आपने मेरे लिए घोषित की है, वह इस व्यक्ति को दे दीजिए। मैं आपके सामने खड़ा हूं, आप जो चाहे वह दंड मुझे दे सकते हैं।'
अपनी प्रजा के विश्वास का ये दृश्य देखकर काशीराज विनम्र हो गए और उन्होंने कहा, 'आज मुझे पता लगा कि आपकी प्रशंसा क्यों की जाती है, ये राज्य आपका है, खजाना आपका है, अब इसमें से आप इस व्यक्ति को जो चाहे दे सकते हैं। मैं आपका प्रशंसक बन गया हूं।'
सीख - व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर टिका रहे और अच्छे काम करने का दृढ़ निश्चय कर ले तो पूरी प्रकृति मदद करती है। कोसलराज का अपनी प्रजा के लिए जो प्रेम था, जो कर्तव्य बोध था, उसने उन्हें हरा कर भी जिता दिया।
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