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परिस्थितियों को हम कैसे देखते हैं, ये सिर्फ हमारी सोच पर निर्भर करता है

 

कहानी - महाराष्ट्र के संत एकनाथ भक्ति के साथ ही अपनी विनम्रता के लिए भी बहुत प्रसिद्ध थे। उनका नियम था, वे रोज गोदावरी नदी में स्नान के लिए जाते थे। एक पठान था, जो रास्ते में बैठा रहता था, वह सभी आने-जाने वाले लोगों को परेशान करता था, एकनाथ जी को कुछ ज्यादा ही सताता था।

अधिकतर लोग तो उस पठान से झगड़ने लगते थे, लेकिन एकनाथ जी ने उससे कभी कुछ नहीं कहा। इस बात से पठान को और ज्यादा गुस्सा आ गया कि ये व्यक्ति मुझ पर गुस्सा नहीं करता, बाकी सभी से तो मैं लड़ लेता हूं, मुझे मजा भी आता है, लेकिन इसका क्या करूं?

एक दिन एकनाथ जी नहाकर आ रहे थे तो पठान ने अपने मुंह में पानी भरा और उस पानी को एकनाथ जी के ऊपर थूक दिया। एकनाथ जी दूषित हो गए। वे पलटकर गए और गोदावरी में फिर से स्नान करके लौट आए। पठान को लगा कि ये तो अब ज्यादा हो रहा है, उसने फिर से मुंह में पानी भरकर एकनाथ जी के ऊपर थूक दिया। एकनाथ जी फिर नहाने चले गए।

ऐसा कहा जाता है कि पठान ने सौ से भी ज्यादा बार एकनाथ जी के ऊपर थूका और हर बार एकनाथ जी चुपचाप नदी में नहाकर लौट आते। अंत में पठान को लगा कि मैं इसका कुछ नहीं कर सकता। उसने एकनाथ जी को प्रणाम किया और क्षमा मांगी।

पठान ने कहा, 'आज मुझे ऐसा लगा कि खुदा है और बंदों की शक्ल में आता है। मैंने सभी को तकलीफ दी है और उससे मेरे अहंकार को अच्छा लगता था, लेकिन आपके सामने मैं हार गया।'

एकनाथ जी ने कहा, 'मैं क्या आपको क्षमा करूंगा, मैं तो आपको धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपकी वजह से पुण्य नदी गोदावरी में सौ से भी ज्यादा बार मुझे नहाने का मौका मिला है। आपको धन्यवाद।'

सीख - एकनाथ जी का ये व्यवहार हमें सीख दे रहा है कि हम परिस्थितियों को कैसे देखते हैं, ये हम पर ही निर्भर करता है। अगर किसी व्यक्ति की वजह से हमें कोई तकलीफ हो रही है तो उसमें भी हमें सकारात्मक पक्ष देखना चाहिए। ऐसा करने से हम क्रोध करने से बच जाते हैं और विवाद नहीं पनपता है।


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