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किसी के उपहार को केवल सजावट की वस्तु न समझें, उससे देने वाले व्यक्ति की भावना जुड़ी होती है

 

कहानी - श्रीकृष्ण ने अंतिम समय में अपने भाई उद्धव को ज्ञान दिया था। उद्धव श्रीकृष्ण के काका के बेटे थे और बहुत विद्वान थे। उद्धव ने श्रीकृष्ण से कई प्रश्न पूछे और भगवान ने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए।

जब उद्धव प्रश्नों के उत्तरों से संतुष्ट हो गए तो श्रीकष्ण ने कहा, 'उद्धव, अब मैं देवलोक गमन करूंगा यानी मैं इस संसार को छोड़कर जाऊंगा। तुम्हें भी मुझसे विदा होना होगा।'

उद्धव ने श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ा और कहा, 'आप मुझे यूं छोड़कर न जाएं, मैं आपके साथ लंबे समय रहा हूं।'

श्रीकृष्ण बोले, 'उद्धव इस दुनिया में सभी अकेले आते हैं और अकेले ही जाना पड़ता है।'

ये बातें सुनकर उद्धव बहुत उदास हो गए। उस समय श्रीकृष्ण ने अपनी चरण पादुकाएं यानी खड़ाऊ उद्धव को भेंट में दीं और कहा, 'इस भेंट को याद रखना और तुम बद्रीकाश्रम चले जाओ। बद्रीनाथ के पर्वतों पर मैंने तुम्हें जो बातें बताई हैं, उन बातों का चिंतन करना। ये खड़ाऊ तुम्हें याद दिलाएंगे। मिलना-बिछड़ना जीवन का सत्य है। इसे टूटना नहीं चाहिए। जो ज्ञान मैंने दिया, उसका सही उपयोग करो।'

श्रीकृष्ण की बातें मानकर उद्धव वहां से चले गए।

सीख - श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा था कि जो ज्ञान मैंने दिया है, उसका चिंतन करो और ये खड़ाऊ मेरी भेंट है। हमारे जीवन में भी कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब हमें कोई भेंट देता है या हम किसी को भेंट देते हैं। भेंट का अर्थ ही ये होता है कि हम भेंट देने वाले व्यक्ति को याद करें और उस व्यक्ति की अच्छी बातों का चिंतन करें और उन अच्छी बातों को अपने जीवन में उतारें।


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