कहानी - एक बार आचार्य विनोबा भावे को योजना आयोग की बैठक में दिल्ली बुलाया गया। वहां बड़े-बड़े अधिकारी, विद्वान मौजूद थे और नेशनल प्लानिंग शब्द के साथ विचार-विमर्श हो रहा था।
जब विनोबा भावे के बोलने का समय आया तो वे बोले, 'राष्ट्रीय योजना का अर्थ होना चाहिए, सबको काम मिले, सबको भोजन मिले और सबको छत मिले। राष्ट्रीय शब्द के अर्थ में सब समाना चाहिए। क्या आपकी ये योजना ऐसी है कि सबको सब मिलेगा?'
एक अधिकारी ने कहा, 'सबको सब कभी मिल नहीं सकता। कोई भी योजना ऐसी नहीं बन सकती।'
विनोबा भावे बोले, 'तो फिर ये राष्ट्रीय योजना नहीं है। सबको सब नहीं मिलेगा तो क्या मतलब निकला इतना सब करने का?'
विनोबा को समझाने के लिए अधिकारी ने एक इंग्लिश शब्द का उपयोग करते हुए कहा, 'ये पार्शियल प्लानिंग है, नेशनल प्लानिंग नहीं है। पार्शियल का अर्थ होता है कुछ लोगों के लिए।'
विनोबा ने कहा, 'पार्शियलिटी का एक शब्द होता है पक्षपात। अगर ये कुछ ही लोगों के लिए है तो ये पक्षपात है। अगर आपको पक्षपात ही करना है तो गरीबों के पक्ष में करें। योजना ऐसी बनाइए कि जिनके पास अभाव है, उनका काम हो जाए।'
विनोबा भावे की बात सुनकर सभी समझ गए कि ये व्यंग्य कर रहे हैं। इसके बाद नई दृष्टि से चिंतन किया गया।
सीख - विनोबा जी की ये टिप्पणी हमें एक बात सिखा रही है कि सार्वजनिक रूप से या किसी गहन विषय पर कई लोगों के बीच में अपनी बात कहनी हो तो कैसे सामने वाले की बात में से ही व्यंग्य के साथ हल्के-फुल्के ढंग से अपनी बात रख सकते हैं। अगर सार्वजनिक रूप से हमने तीखी टिप्पणी की तो वातावरण बोझिल हो जाएगा और वाद-विवाद बढ़ सकते हैं।
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