- 6 अक्टूबर को रहेगा सर्वपितृ अमावस्या पर्व, इस दिन गजछाया योग में श्राद्ध करने से 12 साल तक तृप्त हो जाते हैं पितर
आश्विन महीने की अमावस्या तिथि को सर्वपितृ अमावस्या पर्व मनाया जाता है। जो कि 6 अक्टूबर, बुधवार को है। इस बार 21 साल बाद सर्वपितृ अमावस्या पर कुतुप काल में गजछाया शुभ योग रहेगा। इस संयोग में श्राद्ध और दान करना बहुत ही शुभ माना गया है। इससे पहले 7 अक्टूबर 2010 को ये संयोग बना था और अब 8 साल बाद 2029 में फिर से 7 अक्टूबर को ही ये संयोग बनेगा। इस बार खास बात ये भी है कि पितृ पक्ष की अमावस्या बुधवार को है और इस दिन सूर्य-चंद्रमा दोनों ही बुध की राशि यानी कन्या में रहेंगे।
12 सालों के लिए तृप्त होते हैं पितृ
गजच्छाया योग का जिक्र स्कंदपुराण और महाभारत में किया गया है। तिथि, नक्षत्र और ग्रहों से मिलकर बनने वाले इस शुभ संयोग में श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस शुभ योग में पितरों के लिए किए गए श्राद्ध और दान का अक्षय फल मिलता है। इस शुभ योग में श्राद्ध करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है, घर में समृद्धि और शांति भी होती है। गजछाया योग में किए गए श्राद्ध और दान से पितर अगले 12 सालों के लिए तृप्त हो जाते हैं।
इस पितृ पक्ष में 2 बार बनेगा गजछाया योग
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि गजछाया योग हर साल नहीं बनता है। लेकिन ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति के कारण किसी साल ये योग दो बार भी बन जाता है। इस बार ऐसी ही स्थिति बन रही है। ये शुभ योग ज्यादातर पितृ पक्ष के दौरान ही बनता है। इसे श्राद्ध और दान के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। सूर्य साल में एक बार हस्त नक्षत्र में आता है और ऐसा ज्यादातर पितृ पक्ष के दौरान ही होता है। गजछाया योग के लिए सूर्य का हस्त नक्षत्र में होना जरूरी माना जाता है। गजछाया योग दो तरह से बनता है।
पहला, जब पितृ पक्ष की तेरहवीं तिथि यानी त्रयोदशी के दौरान सूर्य हस्त नक्षत्र में होता है और चंद्रमा मघा नक्षत्र में होता है तो इसे गजच्छया योग कहा जाता है। ऐसी स्थिति 3 अक्टूबर, रविवार की रात 10.30 से रात 3.26 तक रहेगी। लेकिन रात में ये योग बनने से इसका महत्व नहीं है। क्योंकि ग्रंथों के मुताबिक रात में श्राद्ध और दान की मनाही है।
दूसरा, पितृ पक्ष की अमावस्या पर जब सूर्य और चंद्रमा दोनों ही हस्त नक्षत्र में होते हैं तो इसे भी गजच्छया योग कहा जाता है। ऐसी स्थिति 6 अक्टूबर, बुधवार को सूर्योदय से शाम 4.34 तक रहेगी। ये योग कुतुप काल (सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 ) में भी रहेगा। इसलिए इस दिन श्राद्ध और दान का अक्षय पुण्य मिलेगा। साथ ही पितर कई सालों के लिए तृप्त हो जाएंगे।
तीर्थ-स्नान, ब्राह्मण भोजन और दान की परंपरा
काशी विद्वत परिषद के मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि अग्नि, मत्स्य और वराह पुराण में हस्तिच्छाया यानी गजछाया योग का जिक्र किया गया है। इस शुभ योग में पितरों के लिए श्राद्ध और घी मिली हुई खीर का दान करने से पितृ कम से कम 12 सालों के लिए तृप्त हो जाते हैं।
गजछाया योग में तीर्थ-स्नान, ब्राह्मण भोजन, अन्न, वस्त्रादि का दान और श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इसमें विधि-विधान से श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति मिलती है और श्राद्ध करने वाले को पारिवारिक उन्नति और संतान से सुख मिलता है। साथ ही ऋण से भी मुक्ति मिलती है।
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