सदस्सो से रुपए लेकर उन्हें प्लॉटों का कब्जा नहीं दिए जाने के मामले में जिला प्रशासन को हाउसिंग सोसायटियों के खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही हैं। इसके तहत जिन सोसायटियों के खिलाफ ज्यादा शिकायतें हैं, उनकी जांच शुरू की जा रही है। इसी कड़ी में जिला प्रशासन ने पार्श्वनाथ, करतार और मेघना हाउसिंग सोसायटियों की जांच शुरू की है।
इन तीनों हाउसिंग सोसायटियों ने दो दशक पहले अलग-अलग कॉलोनियां काटी थी। इसके तहत सदस्यों से रुपए लेकर प्लॉट जल्द देने का वादा किया था। इसके तहत अधिकांश सदस्यों ने पूरे रुपए जमा करा दिए, लेकिन उन्हें अब तक कब्जा नहीं दिया। प्रारंभिक रूप से तीनों सोसायटियों के करीब 400 पीड़ित सदस्य हैं जो कई बार सहकारिता विभाग, पुलिस, जनसुनवाई में भी शिकायतें कर चुके हैं। कई मामले तो सदस्यों के प्लॉट किसी अन्य को बेचने के भी हैं। कुछ समय पहले सहकारिता विभाग ने जांच की तो काफी गड़बड़ियां मिली थी। एडीएम डॉ. अभय बेड़केर ने बताया कि मामले में तीनों हाउसिंग सोसायटियों के खिलाफ जांच शुरू की गई है। अगले हफ्ते इनके कर्ताधर्ताओं को तलब किया गया है।
छत्रपति शिवाजी सहकारी संस्था की जांच में 9 अक्टूबर तक समय मांगा
उधर, शहर की 9 हजार सदस्यों वाली तथा पांच दशक पुरानी श्री छत्रपति शिवाजी साख सहकारी संस्था में करोड़ों की वित्तीय गड़बड़ियां मिलने के बाद संचालक मंडल को 5 अक्टूबर तक सहकारिता विभाग को अपना पक्ष प्रस्तुत करना था लेकिन अभी जवाब पेश नहीं किया है। मामले में संचालक मंडल के एडवोकेट द्वारा सहकारिता विभाग से फिर समय मांगा गया है। इस पर अब 9 अक्टूबर को जवाब पेश किया जाएगा। वैसे विभाग के पास जांच रिपोर्ट में सारी गड़बड़ियों के तथ्य हैं। अगर संस्था द्वारा विभिन्न डिफाल्टर बैंकों में जमा कराए रुपए वापस नहीं मिले तो संकेत हैं कि संचालक मंडल भंग कर वहां रिसीवर की नियुक्ति की जा सकती है।
दरअसल संचालक मंडल ने बीते सालों में संस्था में जमा सदस्यों के 4.5 करोड़ रु. डिफॉल्टर रही पंजाब एण्ड महाराष्ट्र सहकारी को-ऑपरेटिव बैंक में जमा करा दिए। इस बैंक के भुगतानों पर रिजर्व बैंक ने रोक लगा दी है जिसके चलते शिवाजी संस्था के भी 4.15 करोड़ रु. अटक गए हैं। ऐसे ही कर्ताधर्ताओं ने बिना ठहराव प्रस्ताव के फियकेयर स्माल फाइनेंस बैंक, नागपुर सहकारी बैंक, यश बैंक व कॉसमॉस बैंक में 11 करोड़ से ज्यादा की राशि जमा कर दी। इनमें कॉसमॉस बैंक से भी 1.20 करोड़ रुपए वापस नहीं हुए हैं। इस पर सहकारिता विभाग ने जांच में लगभग पूरे संचालक मंडल को दोषी पाते हुए नोटिस जारी किए थे।
सदस्यों से रुपए लेकर उन्हें प्लॉटों का कब्जा नहीं दिए जाने के मामले में जिला प्रशासन को हाउसिंग सोसायटियों के खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही हैं। इसके तहत जिन सोसायटियों के खिलाफ ज्यादा शिकायतें हैं उनकी जांच शुरू की जा रही है। इसी कड़ी में जिला प्रशासन ने पार्श्वनाथ, करतार और मेघना हाउसिंग सोसायटियों की जांच शुरू की है।
इन तीनों हाउसिंग सोसायटियों ने दो दशक पहले अलग-अलग कॉलोनियां काटी थी। इसके तहत सदस्यों से रुपए लेकर प्लॉट जल्द देने का वादा किया था। इसके तहत अधिकांश सदस्यों ने पूरे रुपए जमा करा दिए लेकिन उन्हें अब तक कब्जा नहीं दिया। प्रारंभिक रूप से तीनों सोसायटियों के करीब 400 पीड़ित सदस्य हैं जो कई बार सहकारिता विभाग, पुलिस, जनसुनवाई में भी शिकायतें कर चुके हैं। कई मामले तो सदस्यों के प्लॉट किसी अन्य को बेचने के भी हैं। कुछ समय पहले सहकारिता विभाग ने जांच की तो काफी गड़बड़ियां मिली थी। एडीएम डॉ. अभय बेड़केर ने बताया कि मामले में तीनों हाउसिंग सोसायटियों के खिलाफ जांच शुरू की गई है। अगले हफ्ते इनके कर्ताधर्ताओं को तलब किया गया है।
छत्रपति शिवाजी सहकारी संस्था की जांच में 9 अक्टूबर तक समय मांगा
उधर, शहर की 9 हजार सदस्यों वाली तथा पांच दशक पुरानी श्री छत्रपति शिवाजी साख सहकारी संस्था में करोड़ों की वित्तीय गड़बड़ियां मिलने के बाद संचालक मंडल को 5 अक्टूबर तक सहकारिता विभाग को अपना पक्ष प्रस्तुत करना था लेकिन अभी जवाब पेश नहीं किया है। मामले में संचालक मंडल के एडवोकेट द्वारा सहकारिता विभाग से फिर समय मांगा गया है। इस पर अब 9 अक्टूबर को जवाब पेश किया जाएगा। वैसे विभाग के पास जांच रिपोर्ट में सारी गड़बड़ियों के तथ्य हैं। अगर संस्था द्वारा विभिन्न डिफॉल्टर बैंकों में जमा कराए रुपए वापस नहीं मिले तो संकेत हैं कि संचालक मंडल भंग कर वहां रिसीवर की नियुक्ति की जा सकती है।
दरअसल संचालक मंडल ने बीते सालों में संस्था में जमा सदस्यों के 4.5 करोड़ रु. डिफॉल्टर रही पंजाब एण्ड महाराष्ट्र सहकारी को-ऑपरेटिव बैंक में जमा करा दिए। इस बैंक के भुगतानों पर रिजर्व बैंक ने रोक लगा दी है जिसके चलते शिवाजी संस्था के भी 4.15 करोड़ रु. अटक गए हैं। ऐसे ही कर्ताधर्ताओं ने बिना ठहराव प्रस्ताव के फियकेयर स्माल फाइनेंस बैंक, नागपुर सहकारी बैंक, यश बैंक व कॉसमॉस बैंक में 11 करोड़ से ज्यादा की राशि जमा कर दी। इनमें कॉसमॉस बैंक से भी 1.20 करोड़ रुपए वापस नहीं हुए हैं। इस पर सहकारिता विभाग ने जांच में लगभग पूरे संचालक मंडल को दोषी पाते हुए नोटिस जारी किए थे।
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