खजरान पुलिस ने भूमाफिया दीपक जैन उर्फ दीपक मद्दा, दिलावर पटेल, सोहराब पटेल, इस्लाम पटेल एवं जाकिर के खिलाफ धोखाधड़ी की विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किया है। आरोिपयों ने एमआर-10 क्षेत्र स्थित न्याय नगर गृह नर्माण संस्था की करीब 29 एकड़ जमीन पर सालों से कब्जा किया था। मामले में कोर्ट द्वारा इस जमीन सरकारी घोषित किया गया। इसके बाद पुलिस ने एफआईआर की और जिला प्रशासन ने भूमाफियाओं से कब्जा वापस लिया।
एडीएम डॉ. अभय बेड़ेकर ने बताया कि खजराना निवासी किसान सोहराब एवं इस्लाम पिता आलम द्वारा न्याय नगर संस्था की अनुबंधित जमीन नियम विरुद्ध तरीके से त्रिशला गृह निर्माण सहकारी संस्था को बेच दिए जाने के संबंध में कलेक्टर मनीष सिंह को शिकायत मिली थी। दूसरी ओर न्याय नगर संस्था के प्लॉट से वंचित पीड़ित सदस्य संस्था से लगातार संघर्षरत थे। इसके साथ ही मेघना-त्रिशला गृह निर्माण सहकारी संस्था के पीड़ित संघ अध्यक्ष गजेन्द्र गिरधारीलाल सेन एवं अन्य द्वारा भी शिकायत की गई कि संस्था के अध्यक्ष दीपक जैन उर्फ दीपक मद्दा उर्फ दिलीप सिसोदिया द्वारा उन्हें प्लॉट नहीं दिए जा रहे हैं और कई सालों से परेशान किया जा रहा है।
यह है हकीकत
दरअसल इसमें ग्राम खजराना की इस जमीन के कुछ हिस्से इनके मालिक किसान दिलावर, सोहराब एवं इस्लाम पिता आलम द्वारा न्याय नगर कर्मचारी सहकारी संस्था से अनुबंधित किए गए लेकिन इन लोगों ने न्याय नगर संस्था से अनुबंधित जमीन बिना संस्था की जानकारी में लाए त्रिशला गृह निर्माण सहकारी संस्था (अध्यक्ष दिलीप पिता स्व. आनंदीलाल सिसोदिया) के साथ मिलकर रजिस्ट्री कर दी जिसके कारण संस्था द्वारा सदस्यों को प्लॉट नहीं दिए। इस तरह इन किसानों एवं भूमाफियाओं ने आपस में मिलकर न्याय नगर संस्था की जमीन खरीद-फरोख्त की। इसमें आईजीए की स्कीम 171 में समाहित होने की जानकारी भी दी गई।
किसानों ने भी की धोखाधड़ी
ऐसे खजराना निवासी किसान सोहराब एवं इस्लाम पिता आलम द्वारा 29 एकड़ जमीन जो शासन द्वारा अतिशेष जमीन न मानते हुए उन्हें पांच वर्षों के लिए कृषि काम के लिए 1983 में रिलीज की थी, में से 15 एकड़ जमीन को शासन के आदेश का उल्लंघन करते हुए न्याय नगर गृह निर्माण सहकारी संस्था को 11 लाख रु. एकड़ के हिसाब से 1.73 करोड़ रु. का अनुबंध किया। फिर यह जमीन अनुबंध अनुसार न्याय नगर संस्था को भी प्रदान नहीं करते हुए त्रिशला गृह निर्माण सहकारी संस्था को बेच दी। अब कोर्ट के आदेश के बाद उक्त जमीन सरकारी होने से तहसीलदार को खसरे में शासकीय जमीन दर्ज करने एवं कब्जा लेने के आदेश दिए गए।
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