हरियाणा से दिल्ली के रास्ते ट्रेन से भोपाल आकर ATM मशीन की खामी का फायदा उठाकर चोरी करने वाला गिरोह पुलिस के हत्थे चढ़ा है। आरोपी भोपाल में SBI की 100 से अधिक एटीएम मशीनों को निशाना बना चुके हैं। हालांकि वे 30 से 35 बार ही सफल हो सके, लेकिन इससे उन्हें मशीन से करीब 10 लाख निकालने में सफलता मिली। पुलिस ने 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। वारदात के आरोपी बाइक रेलवे स्टेशन पर पार्क कर भाग जाते थे।
एएसपी जोन-1 अंकित जायसवाल ने बताया कि प्रेम प्रकाश रंगा फाइनेंशियल सॉफ्टवेयर एवं सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड में जॉब करते हैं। उन्होंने गत 13 अगस्त को ऐशबाग स्थित एसबीआई ATM में छेड़छाड़ कर रुपए निकाले जाने की शिकायत की थी। जांच में सामने आया कि आरोपियों ने एटीएम की खामी का फायदा उठाया है।
सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पुलिस भोपाल रेलवे स्टेशन की पार्किंग तक पहुंच गई। यहां पुलिस को एक बाइक मिली। इसी की मदद से पुलिस ने हरियाणा के पलवल निवासी आरिफ, शाहरुख और मनीष को गिरफ्तार किया। तीनों में से सिर्फ शाहरुख 12वीं तक पढ़ा है, जबकि आरिफ 10वीं और मनीष तो सिर्फ 8वीं तक ही पढ़ा है।
ट्रेन से भोपाल आते थे आरोपी
शाहरुख ने बताया कि उनका एक साथी इक्लास करीब 10 साल तक भोपाल में रह चुका है। वह एक-एक एटीएम मशीन और गलियों को पहचानता है। वह शमीम, इनाम और मुफरीद के साथ भोपाल आकर वारदातें कर चुका है। उसी से उन्हें भी भोपाल में एटीएम और भागने के रास्तों की जानकारी मिली।
वह पिछले एक साल से पलवल से दिल्ली और दिल्ली से भोपाल ट्रेन से आते थे। रेलवे स्टेशन पर पहले से पार्क बाइक को लेकर पहले से चिन्हित एटीएम में पहुंचते। शाहरुख एटीएम के अंदर जाता। मनीष एटीएम के बाहर रहकर लोगों पर नजर रखता, जबकि आरिफ कुछ दूरी पर बाइक लेकर खड़ा रहता था।
चोरी के लिए इस तरह उपकरण तैयार किया
आरोपियों ने बताया कि उन्होंने वीडियो में एटीएम में चोरी करने के बारे में सीखा। इसमें बताया गया है कि एसबीआई बैंक की एनसीआर टाइप की मशीन से रुपए चुराना आसान है। वीडियो से ही उन्हें रुपए निकालने की तकनीकी सीखी। इसमें एक लोहे का विशेष तरह का आंकड़ा बनाना सीखा। यह कैश निकलने वाली जगह पर फंसाने से इसमें नोट फंस जाते थे।
मशीन को ऐसे देते थे धोखा
एएसपी जायसवाल ने बताया कि आरोपी सबसे पहले मशीन में एटीएम लगाकर 500 रुपए निकालते थे। रुपए निकलते ही आरोपी मशीन के कैश निकलने वाले पैनल को पकड़ लेते थे। इसके बाद वे उसमें बनाया गया लोहे का आंकड़ा फंसा देते थे। यह कैश ट्रे उसमें फंस जाता था।
दोबारा कार्ड लगाकर वे रुपए भरते। कैश ट्रे नीचे नहीं होने के कारण मशीन का सेंसर उसे कोड नहीं कर पाता। इससे कुछ रुपए उनके बनाए लोहे के आंकड़े में फंस जाते थे। यही रुपए वे निकाल लेते थे। वे तब तक रुपए निकालते थे, जबकि आंकड़े में रुपए फंसते रहते थे। वह अब तक करीब 100 बार भोपाल के जुमेराती, नबीबाग कॉलेज रोड, अयोध्या नगर, शाहपुरा, इतवारा, बजरिया, छोला, निशातपुरा और अशोका गार्डन में इस तरह की वारदातें करना कबूल कर चुके हैं।
0 टिप्पणियाँ