देवी अहिल्याविश्वविद्यालय का स्कूल ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एक प्रमुख विभाग है, जो अपनी स्थापना से ही अनुसंधान और विकास में सबसे आगे रहा है। यहां के स्टूडेंट्स और शिक्षकों ने पूर्व में गुणवत्तापूर्ण शोध प्रकाश और प्रायोजित अनुसंधान परियोजनाओं के मामले में ख्याति हासिल की है। 2021 का यह साल इस मायने में विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा है। यहां के स्टूडेंट्स और शिक्षकों को लगातार तीन पेटेंट प्रदान किए गए हैं।
बात की जाए तो इस साल की शुरुआत में प्रोफेसर अभय कुमार के साथ काम करने वाले शोधार्थियों को वायरलेस कम्युनिकेशन और मोडल बायोमेट्रिक्स के व्यापक डोमेन में दो पेटेंट दिए जा चुके है। वहीं अब कीर्ति पंवार भाटी और उनके साथ काम करने वाले स्टूडेंट्स स्वच्छ भारत मिशन और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए “ए स्मार्ट डस्टबीन” नामक अभिनव उत्पाद विकास के लिए एक ओर पेटेंट प्रकाशित करने में सफल हुए है। उनका काम, पेटेंट के आधिकारिक पेटेंट और डिजाइन जर्नल में प्रकाशित किया गया हैं।
सेंसर, मोटर से संचालित होता है स्मार्ट डस्टबीन
इंदौर लगातार चार वर्षों तक भारत का सबसे स्वच्छ शहर होने के कारण टीम को इस क्षेत्र में योगदान देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले उत्पाद के विकास के लिए प्रेरणा मिली। विशेष रूप से डस्टबिन का उद्देश्य अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखने के लिए दिव्यांग लोगों की आवश्यकता को पूरा करना है। विभाग की फैकल्टी कीर्ति पंवार भाटी ने स्मार्ट डस्टबीन की तकनीकी जानकारी साझा की। उन्होंने बताया स्मार्ट डस्टबीन में एक बकेट हैं, जो एक स्वचालित ढक्कन के साथ एक प्लेटफार्म पर लगा है। यह डस्टबीन उपयोग करने वाले के वांछित स्थान पर ले जाने के लिए दी गई ड्राइविंग असेंबली पर लगा है।
साथ ही वर्चुअल एलसीडी की मदद से उपयोग करने वाले के इनपुट डेटा को लेने और उचित स्थान पर डस्टबीन के आने जाने को नियंत्रित करने के लिए नियंत्रण साधन भी लगाए गए है। इसके साथ ही इसमें सेंसर लगाया गया है, जो स्वचालित ढक्कन खोलने के लिए एक सर्वो मोटर को आदेश देता और यह उपयोग के बाद स्वचालित रूप से ढक्कन को बंद कर देता है। बकेट के साथ एक ओर सेंसर दिया है, जो बकेट में मौजूद कचरे का स्तर भी वर्चुअल एलसीडी पर प्रदर्शित करेगा। स्मार्ट डस्टबीन में एक चीर्जेबल बैटरी लगी है। उनके मुताबिक नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनआरडीसी), भारत सरकार ने पेटेंट आवेदन दाखिल करने के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की है, जबकि स्कूल ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स ने छात्रों को अभिनव प्रोटोटाइप और डिजाइन विकसित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है।
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