कहानी - महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत एकनाथ जी के घर का दरवाजा एक युवक ने खटखटाया। एकनाथ जी उस समय पूजा कर रहे थे तो उनकी पत्नी गिरिजा बाई ने दरवाजा खोला।
दरवाजा खुलते ही वह युवक घर में घुसा और सीधे जाकर एकनाथ जी की गोद में बैठ गया। उसने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उससे कुछ लोगों ने शर्त लगाई थी कि अगर वह एकनाथ जी को गुस्सा दिला देगा तो उसे 200 रुपए दिए जाएंगे। उस समय 200 रुपए बहुत बड़ी रकम होती थी।
उस युवक ने सोचा कि मैं एकनाथ जी को गुस्सा दिला दूंगा। वह जैसे ही उनकी गोद में बैठा तो उसे लगा कि अब तो एकनाथ जी गुस्सा हो जाएंगे, क्योंकि उस समय वे पूजा कर रहे थे। उन्हें लगेगा कि ये अपवित्र काम किया है।
एकनाथ जी उस युवक से कहते हैं, 'तुम्हारा प्रेम देखकर मेरा मन प्रसन्न हो गया है। तुम सीधे मेरी गोदी में आ गए।'
उस युवक ने सोचा कि अभी तो इन्हें क्रोध नहीं आया, मुझे कोई और प्रयास करना होगा। उस युवक ने कहा, 'मुझे भूख लगी है।'
एकनाथ जी बोले, 'अभी हम खाना खाने बैठेंगे तो तुम भी बैठ जाना।'
दोनों खाना खाने बैठ गए। एकनाथ जी की पत्नी गिरिजा बाई खाना लेकर आईं और जैसे भोजन परोसने के लिए थोड़ी झुकीं तो वह युवक उनकी पीठ पर चढ़ गया। वह डगमगाईं तो युवक ने सोचा कि अब तो एकनाथ जी को गुस्सा आ ही जाएगा।
एकनाथ जी बोले, 'देवी देखना, ये बच्चा पीठ पर से गिर न जाए।'
गिरिजा बाई मुस्कान के साथ कहती हैं, 'मेरे बेटे हरि को जब में पीठ पर बैठाती हूं तो उसे गिरने नहीं देती हूं, मुझे तो इस काम का अभ्यास है। इसे कैसे गिरने दूंगी।'
युवक गिरिजा बाई की पीठ से नीचे उतरा और पत्नी-पत्नी से क्षमा मांगने लगा। उसे समझ आ गया कि जिसके जीवन में संयम और धैर्य है, उसे गुस्सा दिलाना मुश्किल है।
सीख - अगर हम अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहते हैं तो हमें धैर्य और संयम का लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए।
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