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मित्रता में कुसंग नहीं होना चाहिए, किसी से दोस्ती करें तो सोच-समझकर करें

कहानी जब श्रीराम और हनुमान जी की पहली भेंट हुई तो हनुमान जी ने प्रस्ताव रखा, 'हमारे राजा सुग्रीव से आप मित्रता कर लीजिए। आपकी परेशानी ये है कि सीता जी की जानकारी नहीं मिल रही है और सुग्रीव की दिक्कत ये है कि उनका बड़ा भाई बाली उन्हें मारने के लिए खोज रहा है। आप उनकी मदद कर दीजिए, सुग्रीव आपकी मदद कर देंगे।'

ये प्रस्ताव लेकर हनुमान जी राम-लक्ष्मण के साथ सुग्रीव के पास पहुंच गए। उस समय हनुमान जी ने सोचा कि मैं इनकी मैत्री कराता हूं तो इन दोनों के बीच विश्वास के लिए कुछ होना चाहिए। हनुमान जी जानते थे कि राम मैत्री नहीं तोड़ेंगे, लेकिन सुग्रीव कोई गड़बड़ जरूर कर सकते हैं।

हनुमान जी ने विचार करने करने के बाद अग्नि जलाई और अग्नि के साक्ष्य यानी सबूत में दोनों की मैत्री करा दी। हनुमान जी जानते थे कि आग की विशेषता होती है कि वह पक्षपात नहीं करती है। उसके भीतर जो भी आएगा, उसका एक ही परिणाम होगा। तो किसी ऐसे को साक्षी बनाया जाए जो पक्षपात न करें।

मित्रता में धोखा होने की संभावना रहती है, जबकि मित्रता एक जिम्मेदारी होती है। इसलिए हनुमान जी ने श्रीराम और सुग्रीव की मैत्री इस ढंग से कराई।

सीख - ये घटना हमें सीख दे रही है कि दोस्ती करो तो सोच-समझकर करो। मित्रता में कुसंग न हो। दोस्त एक-दूसरे को गलत रास्ते पर न ले जाएं। अग्नि साक्षी का अर्थ है कि एक ऐसा संकल्प करें कि अपने मित्र के जीवन में जब भी कोई संकट आएगा तो हम उसकी मदद जरूर करेंगे।

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