- महामारी ने कंपनियों की आय में कामगारों का हिस्सा बढ़ाया
अमीर देशों में आमतौर पर वेतन और महंगाई धीरे-धीरे बढ़ती हैे। 2007-08 के ग्लोबल वित्तीय संकट के बाद महंगाई रिजर्व बैंकों के लक्ष्य से बहुत कम ही बढ़ी थी। वेतन भी तेजी से नहीं बढ़े थे। अमेरिका में 2015 से 2019 के बीच औसत वेतन बढ़ोतरी 2.9% जबकि मुद्रास्फीति 2 % से कम थी। महामारी ने भारी बदलाव किया है। अमेरिका में प्रति घंटा वेतन इस वर्ष 4.6% बढ़ा है पर महंगाई में 5.4% की वृद्धि ने इस फायदे पर पानी फेर दिया है। जर्मनी में महंगाई में 4.1 % बढ़ोतरी हुई है। जापान में वेतन और मूल्यों में मामूली बढ़ोतरी हुई है।
मूल्य बढ़ने के कारण साफ हैं। वस्तुओं की जबर्दस्त मांग ने सप्लाई की समस्या पैदा की है। फिर भी, वेतन बढ़ने के कारण रहस्यमय हैं। अधिकतर देशों में रोजगार महामारी से पहले के मुकाबले कम है। दरअसल, कामगार बाजार में मौजूद नौकरियों की ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं। वायरस के भय और सरकारों की सहायता ने उन्हें सुस्त बना दिया है। वेतन बढ़ने के कारण बहुत स्पष्ट ना होने से रिजर्व बैंकों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है। हालांकि, ज्यादातर की सोच है कि महंगाई अस्थायी है। लेकिन,अधिक वेतन से मूल्य बढ़ सकते हैं। रहन-सहन का खर्च बढ़ेगा। वैसे, अमेरिका, ब्रिटेन में सरकारी सहायता के कार्यक्रम बंद होने से काम मांगने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के कोई संकेत नहीं मिले हैं। बैंक खातों में पैसा कम होने के बाद 2022 में वेतन वृद्धि की गति धीमी हो सकती है।
वर्षों बाद बदलाव
ताजा रिसर्च बताती है कि पिछले कुछ दशकों में धनी देशों में कंपनियों की संपत्ति और मूल्य में कामगारों का हिस्सा लगभग स्थिर है। यह महामारी के दौरान बड़े संपन्न देशों में एक प्रतिशत बढ़ा है। अमेरिका में महामारी के बाद प्रति कामगार उत्पादकता बढ़ी है।
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