- शक्ति के अधिदेव और देवताओं के सेनापति हैं भगवान कार्तिकेय, इनकी पूजा से खत्म होती हैं बीमारियों और ताकत भी बढ़ती है
हिन्दू कैलेंडर की गणना के मुताबिक कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद कुमार के रूप में भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। जो 26 अक्टूबर को है। इस तिथि पर स्कन्द षष्ठी व्रत किया जाता है। ये व्रत संतान षष्ठी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र की कामना से माताएं व्रत रखती हैं और भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। भगवान कार्तिकेय देवताओं के सेनापति हैं। इसलिए दुश्मनों पर जीत के लिए भी इनकी पूजा की जाती है और दिनभर व्रत रखा जाता है।
कार्तिक महीना होने से ये व्रत खास
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि चैत्र महीने में भी ये व्रत किया जाता है। लेकिन कार्तिक महीना होने से अक्टूबर में आने वाले इस व्रत का बहुत महत्व होता है। भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि के स्वामी हैं और उन्होंने इस महीने में असुर को मारा था। इसलिए उनके नाम पर इस हिंदी महीने को कार्तिक मास कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार भी है। इसलिए ये व्रत बहुत खास माना जाता है।
शक्ति के अधिदेव और देवताओं के सेनापति
भगवान स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं। ये देवताओं के सेनापति भी कहे जाते हैं। इनकी पूजा दक्षिण भारत मे सबसे ज्यादा होती है। यहाँ पर ये मुरुगन नाम से भी प्रसिद्ध है। भगवान स्कंद हिंदू धर्म के प्रमुख देवों मे से एक हैं। स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन नामों से भी पुकारा जाता है।
दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं। कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा खासतौर से तमिलनाडु और भारत के दक्षिणी राज्यों में होती है। भगवान स्कंद का सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में ही है।
पूजा और व्रत के नियम
स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना और पूजा होती है। अखंड दीपक भी जलाए जाते हैं। भगवान को स्नान करवाया जाता है। भगवान को भोग लगाते हैं। इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए कि गई पूजा-अर्चना फलदायी होती है। इस दिन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है। पूरे दिन संयम से भी रहना होता है।
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
स्कंद पुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं को दूर करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है। एक दिन पहले से उपवास करके षष्ठी को कुमार यानी कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए। भगवान कार्तिकेय का ये व्रत करने से दुश्मनों पर जीत मिलती है। वहीं हर तरह की परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। पुराणों के अनुसार स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से ही प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है।
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