- इस महीने दीपदान और भगवान विष्णु की पूजा से मिलता है कभी न खत्म होने वाला पुण्य
पंचांग का आठवां महीना यानी कार्तिक मास 19 नवंबर तक रहेगा। इस महीने में 15 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। फिर 18 को वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर्व 19 नवंबर रहेगा। कार्तिक महीने में भगवान विष्णु की पूजा खासतौर पर की जाती है। इस महीने में रोज सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करने की भी परंपरा है। कार्तिक माह में नदी में दीपदान भी किया जाता है। इस माह का संबंध भगवावन शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय से है।
पुरी, उज्जैन और बनारस के पंडितों का कहना है कि पुराणों में कार्तिक महीने के दौरान दीपदान करने का जिक्र है। साथ ही देव प्रबोधिनी एकादशी, वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है, क्योंकि दीपक अंधकार को दूर कर प्रकाश की ओर जाने का संदेश देता है।
देवउठनी एकादशी: इस बार देव उठनी एकादशी 14 को प्रारंभ होकर 15 नवंबर तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी तिथि को ध्यान में रखकर पंडितों ने इसे 15 को ही मनाए जाने का उल्लेख किया है। इसी दिन भगवान विष्णु चार माह का विश्राम कर योग निद्रा से जागते हैं। जिससे चातुर्मास खत्म होगा और मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाएगी।
वैकुंठ चतुर्दशी: 18 नवंबर को है। इस दिन को हरिहर मिलन होना माना जाता है। यानी भगवान विष्णु और शिवजी का मिलते हैं। इस दिन किए गए स्नान-दान से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और जाने अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन किए गए तीर्थ स्नान से बीमारियां भी दूर होती है।
कार्तिक पूर्णिमा: 19 नवंबर को है। यह चंद्रदेव, विष्णु और लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने की श्रेष्ठ तिथि मानी गई है। इस दिन को देव दिवाली भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन गंगा तट पर देवता दीप जलाकर स्वर्ग प्राप्ति का उत्सव मनाते हैं।
भगवान कार्तिक से पड़ा नाम
पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर को वरदान मिला था कि उसका वध शिवजी के पुत्र से ही होगा। तारकासुर ने वरदान पाकर देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया था। तब भगवान विष्णु और अन्य देवताओं ने शिव जी से विवाह करने की प्रार्थना की। उस समय देवी पार्वती शिवजी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। शिवजी देवी पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। फिर कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ।
कुछ समय बाद ही कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध कर दिया था। तारकासुर का वध हिन्दी पंचांग के आठवें माह में हुआ था। कार्तिकेय स्वामी के पराक्रम से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस हिंदी महीने को कार्तिक नाम दिया। माह में किए गए पूजा-पाठ से अक्षय पुण्य मिलता है।
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