कहानी - एक राजा के रथ के आगे सैनिक चल रहे थे और राजा का रथ आसानी से निकल सके, इसके लिए रास्ते से लोगों को हटा रहे थे। उसी रास्ते पर कई सामान्य लोग भी आना-जाना कर रहे थे। सैनिक राजा की सुरक्षा के लिए जब लोगों को हटाते हैं तो वे अपनी मर्यादा खो देते हैं और लोगों को धक्के देने लगते हैं, ऐसा ही उस राजा के सैनिक भी कर रहे थे। इस तरह से रास्ता खाली करवाया जा रहा था।
वह राजा थे सीता जी के पिता जनक। वह जगह थी जनकपुर। राजा बहुत विद्वान थे। उस समय जब लोगों को धक्का देकर हटाया जा रहा था, एक साधु जिनका शरीर थोड़ा आड़ा-टेढ़ा था, जिन्हें अष्टावक्र के नाम से जाना जाता है, वे भी उसी रास्ते पर चल रहे थे। सैनिकों ने अष्टावक्र को भी धक्का देकर रास्ते से हटाने की कोशिश की।
अष्टावक्र बोले, 'हम यहां से नहीं हटेंगे।'
सैनिकों ने कहा, 'क्यों नहीं हटोगे? सामने से राजा आ आ रहे हैं।'
अष्टावक्र ने कहा, 'एक राजा की सवारी के लिए आम लोगों को क्यों रोका जा रहा है? ये काम राजा के लिए ठीक नहीं है। ये न्यायपूर्ण भी नहीं है। मैं आपको ये काम करने से इसलिए रोक रहा हूं क्योंकि साधु का ये कर्तव्य होता है कि राज व्यवस्था में कोई दोष हो तो दूर करे। मैं इसलिए कह रहा हूं कि ये ठीक नहीं है। इस रथ पर बैठे राजा को ये संदेश तो दीजिए।'
ये सुनते ही सैनिकों ने अष्टावक्र को बंदी बना लिया। उन्हें राजा जनक के पास ले गए। राजा जनक को जब सारी घटना सुनाई गई तो कहा, 'सबसे पहले तो इन्हें मुक्त करो। आप सभी इनसे क्षमा मांगे और मैं भी इनसे क्षमा मांगता हूं। ये मूर्खता पूर्ण काम हो गया है राज व्यवस्था से, हमारे एक व्यवस्था के कारण आम नागरिकों को परेशानी हुई है। इन्हें इसलिए प्रणाम करें कि इन्होंने व्यवस्था सुधारने का अवसर दिया है। मैं तो आपसे निवदेन करता हूं कि आप हमारे राजगुरु बन जाएं।'
सीख - अगर हमारे पास अधिकार हैं तो हमें अपने अधिकारों का गलत उपयोग नहीं करना चाहिए। शासन, प्रशासन, नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों की ये जिम्मेदारी होती है कि सामान्य लोगों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो। व्यवस्था ऐसी हो कि सभी को लाभ मिले।
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