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त्योहार और परंपरा:धनतेरस से शुरू हो जाता है दीपोत्सव, जानिए क्यों की जाती है इस दिन सोने और बर्तन की खरीदारी

 

  • ऋग्वेद में बताया है सबसे पुरानी और पवित्र धातु है सोना, इसे सूर्य का प्रतीक भी माना जाता है

सोना पूरी दुनिया में समृद्धि के सबसे बड़ा प्रतीक है। हिंदू धर्म में सोने को सबसे पवित्र माना जाता है। क्योंकि ये देवताओं की धातु है। इसे सबसे पुरानी धातु भी माना गया है। वेदों में सोने को हिरण्य भी कहा गया है। वेदों में बताया गया है कि धरती और ये सृष्टि सोने ही शुरू हुई। हिंदू धर्म में सोने को सूर्य की शक्ति का प्रतीक मानते हैं। इसलिए धनतेरस पर्व को सोना खरीदने का सबसे अच्छा दिन माना जाता है।

जिन लोगों की आर्थिक स्थिति सामान्य है। वो इस दिन चांदी, तांबा, पीतल खरीदते हैं। इस दिन धातुओं के बर्तन खरीदने की भी परंपरा है। माना जाता है ये प्रथा भगवान धन्वंतरि के हाथ में धारण किए धातु के कलश को देखकर शुरू हुई है। जानिए क्यों इस दिन सोना और बर्तन खरीदा जाता है।

धनतेरस पर सोना खरीदने का धार्मिक महत्व
हेम नाम के राजा के यहां पुत्र के जन्म के साथ भविष्यवाणी हुई कि शादी के चार दिन बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी। राजकुमार ने जब विवाह किया तो यमराज उसे लेने आ गए। उसकी पत्नी ने गहनों का ढेर लगाकर यम का रास्ता रोक दिया और यम, राजकुमार को नहीं ले जा सके। इस तरह मृत्यु टल गई। मान्यता है कि इसलिए महिलाएं इतना सोना खरीदती हैं।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि सोना भारतीय संस्कृति में अहम स्थान रखता है। ऋग्वेद के हिरण्यगर्भ सूक्त में उल्लेख है कि सृष्टि हिरण्यगर्भ यानी स्वर्ण के गर्भ से आरंभ हुई थी। हिन्दू सोने को दुनिया को चलाने वाली सबसे बड़ी शक्ति सूर्य का प्रतीक भी मानते हैं। इसलिए इस पर्व पर सोने की खरीदारी शुभ मानी गई है।

बर्तन खरीदने की परंपरा इसलिए
डॉ. मिश्र का कहना है कि धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक कहा गया है। विष्णु पुराण में निरोगी काया को ही सबसे बड़ा धन माना गया है। धन्वंतरि त्रयोदशी के दिन ही अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इसे धनत्रयोदशी या धनतेरस कहते हैं। वे सोने के कलश के साथ आए थे। इसलिए इस दिन बर्तन और सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है। पांच दिन का दीप उत्सव भी धनतेरस से ही शुरू होता है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, लीप-पोतकर, चौक और रंगोली बनाकर सायंकाल दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का आह्वान किया जाता है।

धन्वंतरि अमृत लेकर प्रकट हुए, इसलिए हुई पर्व की शुरुआत
समुद्र मंथन की कथा के मुताबिक महर्षि दुर्वासा के श्राप की वजह से स्वर्ग श्रीहीन हो गया। सभी देवता विष्णु के पास पहुंचे। उन्होंने देवताओं से असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा। कहा कि इससे अमृत निकलेगा और समृद्धि आएगी।

देवताओं ने यह बात असुरों के राजा बलि को बताई। वे भी मंथन के लिए राजी हो गए। इस मंथन से ही लक्ष्मी, चंद्रमा और अप्सराओं के बाद धन्वंतरि कलश में अमृत लेकर निकले थे। धन्वंतरि त्रयोदशी को अमृत कलश के साथ निकले थे। यानी समुद्र मंथन का फल इसी दिन मिला था। इसलिए दिवाली का उत्सव यहीं से शुरू हुआ।

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