यु तो भगवान गौतम बुद्ध अपनी मस्ती में ही रहते थे। ध्यान में डूबे रहते थे और शांत रहते हुए ही अपनी गतिविधियों से ही संदेश दे देते थे। वे अपनी सभा में आने-जाने वालों पर भी खासी नजर रखते थे। व्यक्ति के चालढाल और व्यवहार से ही उसके बारे में कई बातें समझ जाते थे।
उन दिनों उनकी सभा में एक नौजवान आया करता था, वो काफी विद्वान था। लेकिन, उसे अपने ज्ञान का बड़ा अहंकार भी था। वो बुद्ध की सभाओं में तब तक तो चुप बैठता, जब तक बुद्ध खुद रहते थे। जब बुद्ध चले जाते, तो वो युवक अपने ज्ञान की बातें करने लगता। लोगों से पूछता कि मेरे सामने कोई टिक नहीं सकता, कोई ऐसा विद्वान है? जो मेरे सामने टिक सके। मेरे सवालों का जवाब दे सके।
लोगों ने जाकर बुद्ध को ये बात बताई। तो, एक दिन बुद्ध ने अपना वेश बदला और ब्राह्मण बन गए। और, उस व्यक्ति को आश्रम के बाहर पकड़ा और उससे पूछा कि आपकी विद्वत्ता के बारे में कुछ बताइए।
नौजवान ने कहा- मेरी विद्वत्ता तो स्वयं बोलती है, तुम अपने बारे में बताओ, तुम कौन हो।
बुद्ध ने कहा - मैं वो हूं, जिसका अपने शरीर और मन पर पूरा अधिकार है। एक धनुर्धारी जैसे अपने धनुष पर अधिकार रखता है, कुम्हार बर्तन बनाने पर अधिकार रखता है, एक रसोइया अपनी रसोई पर अधिकार रखता है, मैं वैसे ही अपने शरीर और मन पर अधिकार रखता हूं।
उस युवक ने पूछा - अपने पर नियंत्रण होने से क्या होता है?
तब बुद्ध ने कहा - जब हम अपने शरीर और मन पर नियंत्रण करते हैं, तो कोई भी हमारी प्रशंसा करे या निंदा करे, तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको पड़ता है?
अब उस युवक को ध्यान आया कि उसको तो पड़ता है। उसको तो क्रोध भी आ जाता है। ईर्ष्या भी आ जाती है। तब उसको समझ में आया और बुद्ध ने भी अपना असली रूप प्रकट करके कहा, यदि तुमने ज्ञान तो हासिल कर लिया लेकिन शरीर और मन पर नियंत्रण नहीं किया तो ये ज्ञान ही तुम्हारे लिए विष का काम करेगा। युवक को बात समझ आ गई।
सबकः बुद्ध ने जो बात उस युवक को समझाई, हमें भी समझना चाहिए। ये शिक्षा का युग है। आज की पीढ़ी खूब पढ़ेगी, लिखेगी, लेकिन अगर उन्होंने अपने शरीर और मन को नियंत्रित नहीं किया तो ये ज्ञान विकृत होकर उन्हें गलत दिशा में ले जाएगा।
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