Header Ads Widget

Responsive Advertisement

दत्त पूर्णिमा 18 दिसंबर को:सती अनुसूया के पुत्र हैं भगवान दत्तात्रेय, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शक्तियों से प्रकट हुए थे ये

 

हर साल अगहन महीने की पूर्णिमा पर दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का ही स्वरूप माना जाता है। इसलिए ही दत्तात्रेय भगवान के तीन सिर हैं और छ: भुजाएं हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक ये ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों की ही शक्ति से प्रकट हुए थे। इसलिए एक हाथ में त्रिशूल, एक में शंख और एक हाथ में चक्र है। दत्तात्रेय जयंती पर इनके बालरूप की पूजा की जाती है।

क्या करें इस दिन
1. 
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के बाद भगवान दत्तात्रेय की पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
2. पूजा करनी चाहिए और इसके बाद दत्तात्रेय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से दोष और कष्ट दूर होते हैं।
3. कोशिश करनी चाहिए कि इस दिन व्रत रखें। अगर ऐसा न हो पाए तो तामसिक चीजें खाने से बचना चाहिए।
4. पूरे दिन ब्रह्मचर्य और अन्य नियमों का पालन करना चाहिए।

ये है जन्म की कथा
श्रीमद्भागवत की कथा के मुताबिक ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी सती अनुसूया के पतिव्रत की परीक्षा लेने रूप बदलकर उनके आश्रम पहुंचे। देवी अनुसूया ने अपने पतिव्रत धर्म के प्रभाव से जान लिया कि ये त्रिदेव हैं और परीक्षा लेने आए हैं। फिर सती अनुसूया ने ऋषि अत्रि द्वारा अभिमंत्रित जल तीनों देवों पर छिड़क दिया, जिससे तीनों बालरूप में आ गए।

देवी अनुसूया उन्हें पालने में लेटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से पालने लगीं। इससे देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी सती अनुसूया के पास गईं और उन्हें फिर से असल रूप में लाने को कहा। माता अनुसूया ने कहा कि तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना होगा। ये सुनकर तीनों देवों ने अपनी शक्तियों को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिनका नाम दत्तात्रेय रखा गया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ