बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, दुनिया में 5 वर्ष से कम उम्र के 3.8 करोड़ बच्चे मोटे हैं। जहां पहले ये समस्या केवल अमेरिका जैसे हाई-इंकम देशों में होती थी, वहीं अब ये मिडल और लो-इंकम देशों तक भी पहुंच गई है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि चाइल्ड ओबेसिटी जल्द ही महामारी में तब्दील हो सकती है। पीडाइट्रिक ओबेसिटी जर्नल में प्रकाशित हुई एक रिसर्च के अनुसार, शोध में शामिल बच्चों में फैट की मात्रा ज्यादा पाई गई। साथ ही, उनके दिल की नसों में अकड़न थी, जिससे ब्लड फ्लो अनियमित होता है। बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज के केसेस पहले से ही बढ़ रहे हैं।
बच्चों में मोटापे के कारण
पिछले एक साल में बच्चों में मोटापा 2% तक बढ़ गया है। इसका कारण कोरोना महामारी है। लॉकडाउन के समय बच्चे फिजिकल एक्टिविटी से दूर रहे। इसके अलावा, उनका ज्यादातर समय फोन या कम्प्यूटर के सामने गुजरा। हालांकि, मोटापे की समस्या बच्चों में पहले से बनी हुई है। इसका श्रेय बढ़ती हुई टैक्नोलॉजी, नींद में परिवर्तन और हाई- कॉलेस्टरौल वाले जंक फूड को जाता है।
ये कहती है रिसर्च
लैनसेट जर्नल की 2018 की स्टडी के मुताबिक, 5 वर्ष से कम उम्र के 50% ओबीस बच्चे केवल एशिया से आते हैं। साथ ही, पीडाइट्रिक ओबेसिटी जर्नल में यह बात सामने आई है कि यदि आंतों में फैट ज्यादा होता है, तो बच्चों के दिल पर दबाव पड़ता है। इससे बचपन में ही हार्ट अटैक जैसी घटनाएं होने की संभावना है। टाइप-2 डायबिटीज होने से बच्चों में समय से पहले दिमाग, किडनी, हड्डी और लिवर की बीमारियां होने के आसार हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समस्या का कोई इंस्टेंट इलाज नहीं है। बच्चों में बढ़ता मोटापा एक पब्लिक हैल्थ क्राइसिस है, जिसे विश्व स्तर की चर्चाओं में लाना जरूरी है।
कैसे करें बच्चों का मोटापे से बचाव
बच्चों को पौष्टिक और संतुलित आहार देना जरूरी है। उन्हें जंक फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्स के नुकसान बताएं। फिजिकल एक्टिविटी को उनकी जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। उन्हें सकारात्मक और अच्छे रिश्ते बनाने की सीख दें। अनावश्यक चीजों के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने से रोकें। बच्चों को समय पर उठने व सोने के लिए प्रेरित करें।
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