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जब भी कोई सेवा कार्य करते हैं तो निजी हित को दूर रखना चाहिए

कहानी - आचार्य विनोबा भावे लोगों से भूदान करवाने के उद्देश्य से गांव-गांव घूम रहे थे। वे सभी को समझाते थे कि अगर आपके पास अधिक भूमि है तो अतिरिक्त भूमि दान कर देनी चाहिए। ये भूमि उन लोगों के काम आएगी, जिनके पास भूमि नहीं है।

जब विनोबा जी ऐसी बातें करते थे तो लोग जानते थे कि इस व्यक्ति के पास न तो धन है और न ही कोई सत्ता है, न ही इन्हें कोई लालच है। ये दूसरों के लिए मांग रहे हैं। इसलिए लोग उन्हें खूब दान देते थे।

धीरे-धीरे काफी अधिक लोग विनोबा जी को जानने लगे थे। विनोबा जी का सम्मान करने लगे थे। करीब 40 लाख एकड़ से अधिक भूमि उन्हें दान में मिली थी। वे हजारों मील पैदल चलते थे। अनेक लोग सेना की तरह उनके साथ चलते थे।

वे लगातार चलते थे तो लोग उनसे कहते कि क्या आप थकते नहीं हैं तो वे कहते थे कि सेवा का आनंद ही अलग है। देश के कोने-कोने में वे गए। एक दिन उन्हें सबसे ज्यादा भूमि दान में मिली। उनके सभी साथी थक चुके थे। अपने लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए उन्होंने मजाक में कहा, 'आज इतनी जमीन हाथ में लगी है तो सभी ध्यान रखना कि मिट्टी हाथ में न चिपक जाए। चिपक गई है तो झाड़ लेना।'

सभी सझए गए कि विनोबा जी कहना क्या चाहते हैं। उन्होंने कहा था, 'जो दान हमें मिल रहा है, उसका एक कण भी हमें अपने निजी उपयोग में नहीं लेना है। इसे त्याग कहते हैं।'

सीख - जब भी कोई सेवा कार्य करें तो उसमें निजी लाभ के बारे में सोचना नहीं चाहिए। सेवा में निजी हित को दूर ही रखना चाहिए। अगर सेवा करते समय अपना लाभ देखेंगे तो वह सेवा नहीं सौदा बन जाएगी।

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