शिवपुराण में एक कहानी है। जब भगवान शिव ने सृष्टि के निर्माण की जिम्मेदारी भगवान ब्रह्मा को सौंपी तो उसके संचालन का अनुरोध भगवान विष्णु से किया। सृष्टि के संहार का जिम्मा भगवान शिव ने अपने पास रखा। उन्होंने अपना सारा ज्ञान ब्रह्माजी को सौंप दिया।
ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया। उनके मुंह से चार वेद प्रकट हुए, जिसमें संसार का सारा ज्ञान था। फिर, संसार भर के शास्त्र निकले और इस तरह से ज्ञान पूरी दुनिया में फैला। उसी समय द्वैपायन का जन्म हुआ द्वापर युग में। इन्हें संसार व्यास के नाम से भी जानता है।
ब्रह्माजी ने अपने पुत्र नारद को सारा ज्ञान दिया, नारद के शिष्य व्यास थे। नारद ने अपना सारा ज्ञान व्यास को दिया। नारद जी ने व्यास से कहा कि तुम बहुत विद्वान हो और ज्ञान की बातों का संपादन भी बहुत अच्छा करते हो। हमारे इस ज्ञान को ऐसे संपादित करो कि ये आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी साबित हो।
तब व्यास जी ने वेदों का संपादन कर चार वेद बनाए। अपने शिष्यों के साथ मिलकर 18 महापुराण रचे। सारे संसार में वेद व्यास के नाम से उनकी ख्याति फैल गई। पुराणों के ज्ञान को तो उन्होंने चार लाख श्लोकों में बड़े व्यवस्थित ढ़ंग से रच दिया। कई पुराणों में जिनमें एक-एक लाख श्लोक थे, उनकी संख्या कम करके उन्हें ज्यादा पठनीय बनाया।
इसीलिए, गुरु पूर्णिमा का पर्व वेद व्यास को केंद्र में रख कर मनाया जाता है।
सबकः एक गुरु क्या करता है? ज्ञान को अपने शिष्यों के लायक बनाता है। शिष्यों को ज्ञान के लायक बनाता है। इस पूरी कहानी ने एक संदेश दिया कि जिस तरह से परमात्मा ने अपना ज्ञान ब्रह्माजी को, ब्रह्मा जी ने नारद जी को और नारद जी ने वेद व्यास को दिया। वेद व्यास ने उसका संपादित किया। हमें भी शिक्षा लेनी चाहिए कि हमारे पास भी जो ज्ञान है, उसे इस तरह से सिस्टमाइज करें, सेगमेंटाइज करें कि आने वाली पीढ़ी उसका लाभ ले सके।
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