कहानी - चंद्रशेखर वैंकट रमन एक युवा डॉक्टर से बात कर रहे थे। रमन जी कह रहे थे, 'भौतिक शास्त्री होने के कारण फिजिकल साइंस के आधार पर मैं बहुत सी चीजें जान गया हूं, मैं फिजिक्स का जानकार हूं, लेकिन बहुत सी चीजें ऐसी हैं जो शारीरिक क्रिया से संबंधित हैं। हमारी फिजिक्स की फील्ड में कभी-कभी हमें ये समझ नहीं आता है तो मैं आपसे उन क्रियाओं के बारे में जानना चाहता हूं। क्या आप मुझे थोड़ा समय दे सकेंगे?'
युवा डॉक्टर ने हाथ जोड़ते हुए कहा, 'आप भारत के प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री हैं, आपको नोबल पुरस्कार मिला हुआ है। आपके काम को बहुत मान्यताएं दी गई हैं, आपके काम को रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है और आप मुझसे पूछ रहे हैं।'
रमन जी बोले, 'देखिए हम हमारी फील्ड में मास्टर हैं और आप आपकी फील्ड में। मुझे आपके विषय की कुछ जानकारी लेना है तो आप बताइए मैं कब आपके पास आ जाऊं?'
डॉक्टर ने कहा, 'आप मत आइए, मैं खुद आपके पास कुछ पेपर्स लेकर आ जाऊंगा और आप जो जानना चाहते हैं, वह बता दूंगा।'
रमन जी ने कहा, 'नहीं, आएंगे तो हम ही आपके पास। अभी आप हमारे गुरु के रूप में हैं और हम शिष्य हैं तो कायदा तो ये है कि शिष्य को गुरु के पास जाना चाहिए।'
ये बातें सुनकर डॉक्टर हैरान हो गया।
सीख - इस किस्से से हमें ये शिक्षा मिल रही है कि कुछ सीखने के अवसर कभी खत्म नहीं होते हैं। हम चाहें कितने भी प्रसिद्ध हों, हमारे क्षेत्र के विशेषज्ञ हों, लेकिन कुछ सीखते समय विनम्र रहना चाहिए।
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