- वर्तमान को दो ही लोग जीते हैं- योगी या भोगी। कालखंड में यदि समय के टुकड़े करें तो सबसे बारीक है वर्तमान। इसीलिए वर्तमान को समझ लें तो योग, और न समझें तो भोग...
- इसीलिए दार्शनिकों, विद्वानों, साधु-संतों ने कहा है अतीत को छोड़ो, वर्तमान को पकड़ो और भविष्य से अपने आपको जोड़ो।
- समय के लिए ये तीन सूत्र बड़े काम के हैं- छोड़ो, पकड़ो और जोड़ो।
हमें सबसे अधिक काम वर्तमान को लेकर करना चाहिए, सबसे ज़्यादा सावधानी वर्तमान के प्रति रखनी चाहिए। इसी अवस्था में जीवन जीवंत है। भूतकाल में जीवन के साथ यादें हैं, भविष्य में जीवन एक कल्पना है, लेकिन वर्तमान में जीवन भी ज़िंदा है। ज़िंदगी को ज़िंदा देखना हो तो वर्तमान को ठीक से जीना सीखना होगा। वैसे तो मुर्दे के पास भी एक ज़िंदगी होती है। आख़िरी सांस लेने के बाद जलाए या दफ़नाए जाने तक जो समय होता है, वह मुर्दे की ज़िंदगी है। हमने यदि वर्तमान को नहीं समझा तो हमारी ज़िंदगी भी मुर्दे की तरह है। वर्तमान कितना बारीक है, थोड़ा इसे भी समझना पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान तुरंत अतीत में बदल जाता है और भविष्य शीघ्र वर्तमान में उतर आता है।
वर्तमान से हासिल क्या होता है, थोड़ा यूं समझते हैं... अतीत की पूंजी है यादें, स्मृतियां जो अधिकांश मौक़ों पर अशांत करती हैं। यादें भ्रम और भय पैदा करती हैं। भविष्य की पूंजी है कल्पनाएं, जिससे बेचैनी उतरती है। अब आते हैं वर्तमान पर। इसके दो भाग कर लीजिए। यदि वर्तमान में जीना चाहें तो यह मालूम होना चाहिए कि हम तीन चीज़ों से बने हैं- शरीर, मन और आत्मा। वर्तमान यदि शरीर केंद्रित है तो भोग और विलास के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा। यदि मन केंद्रित है, तो मन का तो स्वभाव ही है वर्तमान पर कभी नहीं टिकना। वह या तो अतीत में खो जाता है या भविष्य में छलांग लगाने लगता है। अब बात आती है आत्मा की। यदि अपने वर्तमान में आत्मा के साथ जिएंगे तो दुनिया में आपसे बड़ा शांत, सौम्य, विनम्र और जीवन के हर पल का आनंद उठाने वाला कोई दूसरा नहीं होगा। तो दो रास्ते हैं वर्तमान के। एक शरीर का, दूसरा आत्मा का। अब किसका चयन करना, यह आप पर है।
क. वर्तमान...
सबसे पहले तो यह समझ लें कि मन को रोके बिना वर्तमान पर नहीं पहुंचा जा सकता। यदि मन सक्रिय है, तो या तो आप अतीत में पड़े हैं, या भविष्य में गिरे हुए हैं। यहां वर्तमान से आपका कोई लेना-देना नहीं होगा। सिर्फ़ इस भ्रम में होंगे कि हम वर्तमान में हैं, लेकिन सच यह है कि मन के सक्रिय होते कोई वर्तमान में हो ही नहीं सकता। वर्तमान में देह तो सक्रिय होगी, लेकिन इससे काम नहीं चलेगा। चेतना जाग्रत होनी चाहिए। यदि चेतना जाग्रत नहीं है तो देह वर्तमान में केवल भोग-विलास ही कर पाएगी। चेतना जाग्रत कैसे होगी? इसके लिए मन पर काम करना पड़ेगा। चेतना यानी हमारी कॉन्शियसनेस। चेतना सबसे बड़ा काम यह करती है कि जैसे ही अतीत की कोई बात याद आती है, वह समझाती है कि ज़रूरी हो और कोई अनुभव लेना हो, तो ही भूतकाल की घटना को याद करो और तुरंत विदा भी कर दो। ऐसे ही चेतना समझाती है कि भविष्य की योजनाएं बनाओ, आने वाले समय को लेकर होमवर्क भी कर लो, लेकिन बेचैनी शुरू होते ही तुरंत विदा करो। तब आप इस शरीर से वर्तमान को जी सकेंगे। यदि वर्तमान पर नहीं टिकते हैं तो हमारे जीवन में जो भी घटना आएगी, चिंता लेकर आएगी। चिंता अधिक समय टिक जाए तो बीमारी बन जाती है। कई लोगों का तो स्वभाव ही हो जाता है छोटी-छोटी बातों पर चिंता पालना, बेचैन रहना। जीवन में यदि चिंता का कोई मामला आए तो या तो हम किसी पर थोप देते हैं या किसी की मदद लेते हैं, या उसे किसी से बांट लेते हैं। यदि ये तीन काम नहीं किए, तो चिंता बढ़ेगी ही। भूत व भविष्य पर टिकने का प्रसाद ही चिंता और बेचैनी है। फिर उसका अगला कदम कुंठा है। तो चिंता को निपटाने के दो तरीक़े हैं- एक बुद्धि से, दूसरा मन से। बुद्धि आपको वर्तमान पर टिकाएगी और कहेगी रुको, कोई निदान निकालते हैं। मन कहेगा चलो, कुछ पिछला सोचते हैं, कुछ आगे चलते हैं...। और, आप परेशान हो जाएंगे।
इसलिए वर्तमान के तीन सूत्र पकड़कर चलिए... पहला– करो, दूसरा– सीखो और तीसरा– भोगो।
1.1 करो
वर्तमान का यदि सामान्य रूप देखना हो तो एक शब्द प्रयोग करिए- आज। यह वर्तमान का सबसे बड़ा रूप है। यूं तो वर्तमान बहुत बारीक है। पकड़ में नहीं आएगा, क्योंकि जब तक उसे समझ पाएं, वह भूत हो जाता है और जब तक उस पर कुछ कर पाएं, भविष्य वर्तमान बन जाता है। इसलिए थोड़ा आज को समझें। आज- जिसे अंग्रेज़ी में टुडे कहते हैं, वर्तमान का फैला हुआ आसान रूप है। हम साधारण मनुष्यों के लिए वर्तमान का सही स्वरूप आज है। इस आज में हमारे पास 24 घंटे भी हो सकते हैं और 12 भी। अपनी-अपनी सुविधा से तय कर लें और उन्हें अपना वर्तमान मान लें। ज़िंदगी थोड़ी आसान हो जाएगी। आज को और अच्छे तरीक़े से समझना हो तो श्रीराम के वनवास में चलना होगा। मान लो हमारे पास आज में 24 घंटे हैं तो रामजी के पास 14 वर्ष थे। पूरे 14 बरस की अवधि को उन्होंने आज जैसा माना था और उस आज को इतने अच्छे-से जिया कि फिर राजा बने, रामराज्य स्थापित हो गया। तो करो का अर्थ यह हुआ कि जो भी करना हो, आज को समझकर आज में ही कर लो। अपने टुडे को बहुत परफ़ेक्ट रखो। इसे सीधे-सीधे यूं कहें कि जो भी करना है, आज कर डालो। बस, यहां दो बातें याद रखिएगा- वह करने लायक़ हो और फलदायक हो।
1.2 सीखो
वर्तमान में जैसे करो का महत्व है, वैसे ही सीखो भी महत्वपूर्ण है। हर घड़ी, हर क़दम पर, हर काम में कुछ न कुछ सीखना मिल रहा होता है। हमें इतना जाग्रत रहना चाहिए कि सीखने की वृत्ति ऐसी हो कि हर बात से कुछ सीख लेंगे। सीखयुक्त जीवन भयमुक्त होता है। चूंकि भविष्य मनुष्य को डराता है, तो भयमुक्त होने की तैयारी वर्तमान में ही करनी पड़ेगी। इसलिए सीखो कि भयमुक्त कैसे रहा जाए। वर्तमान की सबसे बड़ी सीख होनी चाहिए कि डरेंगे कभी नहीं। जो होगा, निपट लेंगे।
1.3 भोगो
वर्तमान में देह बिना भोगे रहेगी नहीं। कुछ न कुछ भोगना ही है उसे। दुनिया में भोगने के लिए एक सबसे बड़ा, प्यारा तत्व है प्रकृति से मिला रस। इसे पंचरस भी कहा जा सकता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश : ये जो पंचतत्व हैं, इनके रस को वर्तमान में भोगना है और शरीर को इनसे जोड़ना है। इसका एक नाम या रूप स्वास्थ्य भी है।
जो स्वस्थ है, समझकर चलिए उसने वर्तमान को अच्छे से जिया। बीमारी का संबंध न तो हमारे अतीत से है, न ही भविष्य से। यह सबसे अधिक प्रभाव हमारे वर्तमान पर डालती है। इसलिए प्रकृति के पंचरस का पान करते रहें। इसका सबसे बड़ा स्वाद या कहें प्रभाव यह है कि आप बाहर से सक्रिय होते हैं और भीतर से शांत रहने लगते हैं। इतना अच्छा वर्तमान कौन नहीं चाहेगा।
वर्तमान से जुड़ने, उसको ठीक से भोगने के लिए एक बहुत अच्छा प्रयोग है सांस का। अपनी हर आती-जाती सांस के प्रति जितने होश पूर्ण होंगे, वर्तमान को उतने अच्छे-से भोग सकेंगे। इसलिए जब भी समय मिले, कमर सीधी, आंखें बंद कर अपनी सांस को भीतर जाते, बाहर आते हुए देखिएगा। कोई कठिन काम नहीं है यह। बड़ा आसान है, और पाएंगे वर्तमान आपकी मुट्ठी में है।
चूंकि हमें वर्तमान में जीना है, तो भूत यानी अतीत को भी समझना होगा। तो चलिए, थोड़ा इसे भी समझ लेते हैं...।
ख. भूत...
भूतकाल सबका अपना-अपना है। यह ज़िंदा ही स्मृतियों के कारण है। दुनिया में जितने भी बोझ हैं, उनमें सबसे बड़ा स्मृति का बोझ है। यादों की लंबी सूची हर एक के पास होती है और उनको यदि बोझ बना लें तो जीवन की चाल लड़खड़ाना ही है। उसी का नाम अशांति है। भूतकाल और भविष्यकाल ये सब हमारी सुरक्षा के इंतज़ाम हैं। हम बहुत डरे हुए हैं तो अतीत उस डर को अशांति में बदलता है, भविष्य का चिंतन और बेचैन कर देता है। फिर हम सोचते हैं परेशानी पैदा हुई है तो इलाज भी यहीं मिलेगा, लेकिन भयमुक्त होने के लिए एक ही रास्ता है- वर्तमान पर टिक जाना। यह भी तय है कि भूत-भविष्य से पूरी तरह से कोई कट नहीं सकता। तो जब भूतकाल में हों, तीन काम करें... पहला– भूलें, दूसरा– भूल सुधारें और तीसरा– अनुभव लें।
2.1 भूलें
अपने अतीत को भूल जाएं। इसे जितना याद रखेंगे, उतने अधिक परेशान होंगे। भूत को भूलने के लिए मन को स्थिर करना होगा, और यहां काम आएगा ध्यान यानी मेडिटेशन। जब हम ध्यान में उतरते हैं तो अपने भूतकाल को भूल रहे होते हैं।
2.2 भूल सुधारें
भूतकाल का सबसे बड़ा लाभ यह उठाएं कि ज़िंदगी में जो भूलें की हैं, उनको सुधारें। कोई यह दावा नहीं कर सकता कि मैंने ज़िंदगी में कोई भूल नहीं की। भूल सबसे होती है। जो भूलें हुई हैं, वे एक स्टॉक बनकर भूतकाल में चली गईं। जैसे बैंकों में लॉकर होते हैं, ऐसे ही हमारे भूतकाल में अलग-अलग क्षेत्र की ग़लतियों के ख़ाने बने हुए हैं। परिवार, निजी जीवन, व्यापार-व्यवसाय में या समाज के प्रति ग़लती की है तो उन भूल या ग़लतियों को वर्तमान में सुधारते चलिए।
2.3 अनुभव लें
भूतकाल से यदि कुछ लिया जा सकता है तो वह है अनुभव। ध्यान रखिएगा, सिर्फ़ अनुभव ही लेना है, यादें नहीं। स्मृति और अनुभव में अंतर है।
जैसे किसी व्यक्ति की जान जा रही हो तो उसका शरीर बड़ा निरीह-मजबूर हो जाएगा। स्मृतियां ऐसे ही शरीर की तरह हैं और उनके भीतर जो सांसें हैं, वे अनुभव की तरह हैं। अपने अनुभव पर काम करिए। हर स्मृति में से कोई अच्छा-सा अनुभव निकाल लीजिए। यहां लोग ग़लती करते हैं। अनुभव ढूंढने की जगह स्मृतियों में खो जाते हैं। इसलिए भूतकाल को भूलना ही भूतकाल की समझ है और भूतकाल की समझ ही वर्तमान को स्वस्थ व ताज़ा बनाएगी।
हमने वर्तमान को समझा, भूत को जाना। चलिए, थोड़ा भविष्य को भी टटोल लेते हैं...।
ग. भविष्य...
प्रकृति में मनुष्य ही ऐसा है जो भविष्य को देख सकता है, उसे वर्तमान में बदलने से पहले संवार सकता है। यूं तो मनुष्य और पशु में बहुत फ़र्क है, लेकिन पशु के पास भविष्य की कोई समझ नहीं है। इसीलिए पशुओं को तिर्यक कहते हैं। यानी पशु का सिर, हृदय, पेट और इंद्रियां धरती के समानांतर होती हैं और इसीलिए वह चार पैरों से चलता है। मनुष्य दो पैर से चलता है, इसलिए उसका सिर, हृदय, पेट और इंद्रियां क्रम से ऊपर से नीचे होती हैं और इसीलिए उसके पास संभावना है कि वह अपनी जीवन ऊर्जा को नीचे से ऊपर उठा सकता है। जैसे-जैसे जीवन ऊर्जा ऊपर उठती है और उठते-उठते दोनों भौंहों के बीच (आज्ञाचक्र पर) आती है कि हम भविष्यद्रष्टा हो जाते हैं। यहां से हम अपने भविष्य को बहुत अच्छे से देख सकते हैं। तो भविष्य के प्रति भी तीन काम करने होंगे... पहला– दूरदर्शिता, दूसरा– सावधानी और तीसरा–योजनाबद्धता।
3.1 दूरदर्शिता
दूरदर्शी होने के लिए जब भी समय मिले, पूरा ध्यान दोनों भौंहों के बीच केंद्रित कर भीतर देखिएगा। योग की भाषा में इसे आज्ञाचक्र कहा गया है और सामान्य भाषा में तीसरा नेत्र। जब दो आंखें बंद कर ध्यान में उतरते हैं तो यह तीसरी आंख जाग्रत हो जाती है और इससे आप भविष्य में झांक सकते हैं। इसी को दूरदर्शिता कहते हैं। दूरदर्शिता का दूसरा अर्थ है अपने सपनों में से सच को निचोड़ लेना, बदलाव पर लगातार नज़र रखना।
3.2 सावधानी
भविष्य के प्रति सबसे बड़ी सावधानी तो यह रखना है कि हमारा भविष्य भूत और वर्तमान से हमेशा ऊंचा ग्राफ़ लिए हो। यानी आने वाला कल जो कि कुछ समय बाद हमारा आज बन जाएगा, इसके ग्राफ़ में हमेशा ऊंचाई हो। सीधी-सी बात है हर आने वाला कल आज से ऊंचा होना चाहिए। इसको लेकर बहुत सावधान रहिए।
3.3 योजनाबद्धता
अपने भविष्य के प्रति प्लानिंग, एक इमेजिनेशन बहुत योजनाबद्ध ढंग से करिए। दुनिया में सबसे योजनाबद्ध होने का ढंग ही योग है। योग का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। इसका संबंध जीवन और उसकी शांति से है। जितना योग-ध्यान आज करेंगे, आने वाले कल पर उतनी ही अच्छी पकड़ हो जाएगी। तो अतीत से कटना, भविष्य से जुड़ना वर्तमान के लिए आनंद जैसा है, बशर्ते इस बात की समझ विकसित हो जाए कि करना कैसे है।
जैसे-जैसे मनुष्य की उम्र बढ़ती है, वह पूरी ताक़त से या तो अपने अतीत से चिपक जाता है, या भविष्य के अज्ञात भय में डूब जाता है। बच्चे के लिए न तो अतीत का महत्व होता है, न भविष्य का। बस, उसके वर्तमान में धीरे-धीरे अतीत प्रवेश कर रहा होता है। एक बच्चा भविष्य को लेकर बहुत अधिक जागरूक नहीं होता, लेकिन जवानी आते-आते अतीत अपना काम कर चुका होता है और भविष्य उसके लिए चुनौती बन जाती है। इसलिए जवानी वर्तमान को जीने लगती है।
बूढ़ों के साथ दिक़्क़त यह है कि पीछे का छूटता नहीं, आगे का डराता है। तो उनका भी आज यानी वर्तमान बिगड़ने लगता है। इसीलिए हमने देखा है कि जीवनभर दृढ़ निष्ठावान, विद्वान और धार्मिक रहे लोग बुढ़ापे में आंसू बहाते मिलते हैं। अच्छे-अच्छे समझदार युवा वर्तमान में डिप्रेशन में डूब जाते हैं और बचपन चिड़चिड़ा होकर झल्लाहट में उतर गया है। इसलिए उम्र के इन तीनों पड़ाव को यह समझना होगा कि यदि वर्तमान संवारना है तो आत्मा को अनुभूत करने का अभ्यास करते रहिए।
हम केवल शरीर नहीं हैं, सिर्फ़ मन से भी संचालित नहीं हैं। हम आत्मा हैं। सुनने में बात कठिन लगती है, करने में बड़ी आसान और जीने में आज यानी वर्तमान को आनंद से भर देने वाली है...।
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