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अहंकार न करें, वर्ना भगवान किसी न किसी रूप में आकर हमारा अहंकार तोड़ देते हैं

कहानी दैत्यों के राजा बलि बहुत तपस्वी और पराक्रमी थे, वे अहंकारी भी बहुत थे। बलि के बारे में बात प्रसिद्ध थी कि जो कोई उनके द्वार पर आता है, उसे वे दान दिए बिना नहीं भेजते थे। इस कारण वे दानवीर भी कहे जाते थे।

दान देते-देते उनके स्वभाव में अंहकार आ गया था। वे दैत्य थे तो अहंकार की वजह से कुछ ऐसे काम कर देते थे, जो भगवान को अच्छे नहीं लगते थे।

उस समय भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। इस अवतार में भगवान बहुत छोटे से बालक बने। वामन यानी छोटा, उनकी उम्र सात वर्ष थी। राजा बलि ने एक यज्ञ किया था, उसमें वह सभी को दान दे रहे थे। वामन भगवान भी राजा बलि के यहां पहुंच गए।

छोटे से ब्राह्मण बालक को देखकर राजा बलि प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा, 'बताओ ब्राह्मण देवता आपको क्या चाहिए। मांग लो कुछ, मैं आपको कुछ देना चाहता हूं। मेरा नाम बलि है, मैं दानवीर हूं।'

भगवान ने सोचा कि तू दानवीर तो है, लेकिन अहंकारी भी है। भगवान ने राजा बलि से कहा, 'मुझे आपके राज्य में तीन पग हिस्सा चाहिए।'

राजा बलि जोर से हंसा और बोला, 'छोटा सा बालक तीन पग हिस्सा मांग रहा है, और वह भी राजा बलि से। जिसका पृथ्वी और स्वर्ग पर अधिकार है।'

वामन देव ने कहा, 'तो क्या हिस्सा देने के लिए हां करते हो?'

राजा बलि ने हिस्सा देने के लिए हां कर दी। उसी समय भगवान वामन से विराट हो गए। एक पैर से उन्होंने पृथ्वी नाप ली और दूसरे पैर से स्वर्ग। अब वामन देव ने बलि से पूछा, 'अब बता मैं तीसरा पैर कहां रखूं?'

राजा बलि समझ गए कि ये भगवान हैं। बलि ने कहा, 'तीसरा पैर मेरे सिर पर रखिए।'

जैसे ही वामन देव ने तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रखा तो वह पाताल में चले गए।

सीख - इस कथा की सीख यह है कि पूरी दुनिया का स्वामी तो सिर्फ परमात्मा ही है। कुछ लोग धन-संपत्ति पाते ही अहंकारी हो जाते हैं और खुद को सबसे बड़ा समझने लगते हैं। अहंकार एक ऐसी बुराई है, जिसकी वजह से हमारा पतन हो सकता है। भगवान किसी न किसी रूप में आकर अहंकारी का अहंकार जरूर तोड़ते हैं।

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