कहानी - शिव जी पर्वतों के बीच एकांत में उपासना कर रहे थे। उनकी पहली पत्नी सती देह त्याग चुकी थीं तो शिव जी अकेले हो चुके थे। शिव जी घोर तप कर रहे थे। कोई उनसे मिल भी नहीं सकता था। वे अपनी तपस्या में वे डूब हुए थे।
एक दिन शिव जी के पास हिमाचल राज और उनकी पुत्री पार्वती पहुंचीं। हिमाचल राज के मन में था और पार्वती जी भी चाहती थीं कि मेरा विवाह शिव जी के साथ हो जाए, लेकिन शिव जी तो तप कर रहे थे। वे विवाह करना नहीं चाहते थे।
हिमाचल राज ने शिव जी ने निवेदन किया, 'आप यहां तप कर रहे हैं, आपकी व्यवस्था देखने वाला यहां कोई नहीं है। अगर आप अनुमति दें तो मेरी पुत्री यहां रुक जाए और वह आपकी सेवा करेगी।'
शिव जी ने कहा, 'स्त्री संग से विषयोत्पत्ति होती है। वैराग्य, श्रेष्ठ तप सब बिगड़ जाता है, अगर एकांत में स्त्री हो। मैं यहां तप कर रहा हूं तो मैं आपसे क्षमा चाहता हूं।'
शिव जी ने बात एकदम सही कही थी, लेकिन पार्वती जी बहुत गहराई से सोचती थीं तो उन्होंने कहा, 'आप बार-बार कह रहे हैं कि आप तप कर रहे हैं तो जब आप तप ही कर रहे हैं तो आपको ये आभास कैसे है कि ये शरीर स्त्री का है और ये शरीर पुरुष का है।'
ये बात सुनकर शिव जी हैरान हो गए, बड़ी बुद्धिमानी से इस स्त्री ने बात रखी है। तब शिव जी ने कहा, 'आप अपनी जगह सही हैं, मैं अपनी जगह सही हूं।'
शिव जी ने हिमाचल राज से कहा, 'समय-समय पर सीमित अवस्था में ये मेरी सेवा करें और फिर वापस लौट जाएं।'
सीख - महिला-पुरुष के संबंध में कुछ मर्यादाएं होती हैं, जिनका पालन करना चाहिए। महिला-पुरुष अगर एकांत में हैं तो बहुत संयम रखना चाहिए। एकांत में वासनाएं पनपने लगती हैं और अच्छे-अच्छे विद्वान लोगों के मन में भी कामवासना जाग जाती है। इसलिए एकांत में मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए।
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