यह धारणा बौद्धों और हिंदुओं में पाई जाती है कि जब किसी भूमि को एक पवित्र व्यक्ति के शरीर से जोड़ दिया जाता है, तब वह भूमि भी पवित्र हो जाती है। आइए पहले इस धारणा का बौद्ध वर्णन सुनते हैं।
कहते हैं कि गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद उनका दाह संस्कार कुशीनगर शहर में हुआ। इसके बाद उनके अवशेष उनके शाक्य समुदाय को दिए जाने वाले थे। लेकिन इससे पहले कि यह हो सके, गंगा के मैदानी इलाक़ों के सात राजाओं ने कुशीनगर पर हमला कर दिया और उन अवशेषों पर अपना दावा किया। उन्होंने शहर को घेर लिया और घमासान युद्ध की धमकी दी।
अंत में द्रौण नामक ऋषि ने बुद्ध के अवशेषों को लगभग आठ हिस्सों में विभाजित किया और उन्हें डिब्बों में डालकर उन आक्रमणकारी राजाओं को दे दिए। राजा उन अवशेषों को अपने-अपने राज्यों में ले गए और उन्हें पवित्र टीलों में रख दिया। स्तूपों की उत्पत्ति यहीं से हुई। स्तूप वे पवित्र जगह है, जहां बुद्ध का कोई अवशेष रखा गया है।
कहते हैं कि सम्राट अशोक ने बुद्ध के लगभग 200 साल बाद राज किया। उन्होंने बुद्ध के अवशेषों की फिर से खोजबीन की और उन्हें 84,000 भागों में विभाजित किया। फिर इन अवशेषों को पूरे उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया और यहां तक कि दुनियाभर में ले जाया गया। इस प्रकार आज भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हम बुद्ध के अवशेष पाते हैं।
थेरवाद बौद्ध धर्म के महान दर्शनशास्त्री 'बुद्धघोष' बुद्ध के लगभग एक हज़ार साल बाद हुए थे। किसी विहार की महत्ता और उसका प्रभुत्व इस बात पर निर्भर होता है कि उसके पास कितने अवशेष हैं। यह विचार बुद्धघोष के समय में लोकप्रिय हुआ। बुद्ध के विभिन्न अवशेषों की कहानियां हमें म्यांमार, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड, चीन, जापान, अफ़ग़ानिस्तान और अब तो अमेरिका में भी सुनने में आती हैं। एक किंवदंती ऐसी भी उभरी है कि भविष्य में कई सालों बाद सारे अवशेष साथ आकर मिल जाएंगे और बोधगया में बुद्ध का शरीर फिर से पुनर्जीवित होगा।
लगभग ऐसी ही कहानी हिंदू धर्म में भी पाई जाती है। लेकिन इस कहानी का बुद्ध की कहानी के लगभग 1,000 साल बाद दस्तावेज़ीकरण किया गया। उसके अनुसार शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष की इच्छा के विरुद्ध शिव से विवाह किया था। क्रोधित दक्ष ने एक यज्ञ आयोजित किया और शिव का अपमान करने के उद्देश्य से उन्होंने शिव को छोड़कर अन्य सभी को यज्ञ में आमंत्रित किया।
जब सती ने सभा में जाकर दोनों के बीच समझौता करवाने की कोशिश की, तब दक्ष ने शिव का और अपमान किया। सती को अपने पति का यह अपमान सहन नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ वेदी की चिता में ही आत्मदाह कर लिया। वे अपने रूढ़िवादी पिता और अपने तपस्वी पति के बीच तनाव को सहन नहीं कर सकती थीं।
सती की आत्महत्या के बारे में जानकार शिव ने क्रोध में दक्ष प्रजापति का शिरश्छेदन कर लिया। लेकिन क्रोध थम जाने पर उन्होंने दक्ष को फिर से जीवित किया और सती का शव लिए शोक संतप्त होकर दुनियाभर में घूमने लगे।
ऋषि समझ गए कि शिव का शोक पूरे विश्व का विनाश कर देगा। उन्होंने विष्णु से सती के शरीर को छोटे टुकड़ों में काटने की विनती की, इस आशा में कि सती के मृत शरीर के चले जाने से शिव का मानसिक संतुलन लौट आएगा। इस प्रकार सती के शरीर को बहुत छोटे टुकड़ों में बांट दिया गया। वे भारत के विभिन्न हिस्सों में गिरे और उनसे शक्तिपीठों ने जन्म लिया। विभिन्न मूलग्रंथ शक्तिपीठों की संख्या अलग-अलग बताते हैं - 51 से लेकर 64 तक। उदाहरणार्थ, पंजाब के ज्वालामुखी में सती की जीभ है; असम के कामाख्या में उनका गर्भ है। उसी तरह उनकी पादांगुलियां, उंगलियां और नाभि भारत के विभिन्न हिस्सों में हैं।
हमें इन कहानियों पर विश्वास करना है या नहीं, यह हमारी आस्था पर निर्भर करता है। लेकिन बुद्ध के अवशेष और शक्ति के शरीर के विभिन्न अंग, जो भूमि को पवित्र बनाते हैं, के बीच समानता स्पष्ट है। क्या वे एक दूसरे से प्रभावित थे? हम निर्णायक ढंग से नहीं कह सकते।
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