कहानी - महात्मा गांधी हमेशा अपने आसपास के लोगों से कहा करते थे कि निर्बल के बल राम। लोग गांधी जी से अक्सर पूछते थे कि इसमें राम तो समझ आता है, लेकिन निर्बल शब्द का अर्थ क्या है?
गांधी जी कहते थे, 'कभी-कभी बलवान, समर्थ और समझदार इंसान भी निर्बल हो जाता है।' ये बात समझाने के लिए खुद का ही उदाहरण देते थे। गांधी जी करीब 20 वर्ष की उम्र में अफ्रीका में थे। वहां एक बार अन्नहारियों का एक सम्मेलन हो रहा था। वहां गांधी जी अपने मित्र के साथ पहुंचे थे। उन्हें वहां जिस घर में ठहराया था, वह सदाचारी महिलाओं का घर नहीं था। उन महिलाओं का आचरण ठीक नहीं था।
युवा मोहनदास वहां ताश खेल रहे थे। उस घर की महिला भी वहां आकर बैठ गई। उसका आचार-विचार उन्मुक्त था। ताश खेलते-खेलते कुछ ऐसी बातें हुईं जो अश्लीलता के आसपास की थीं। धीरे-धीरे संवाद क्रियाओं में बदलने लगे। मोहनदास को उस महिला में रुचि जाग गई थी। उस समय गांधी जी के साथ जो मित्र था, उसने डांटते हुए कहा, 'ये सब तेरे काम का नहीं है, तू चल यहां से भाग जा।'
गांधी जी के मित्र ने ये बात इतनी दृढ़ता से कही थी कि गांधी जी तुरंत उठे और वहां से बाहर निकल गए। बाहर निकलकर गांधी जी को समझ आया कि निर्बल के बल राम।
गांधी जी ने आगे कहा कि उस समय मेरा पतन होने वाला था, लेकिन मेरे मित्र के भीतर बैठे राम ने मुझे चेतावनी दी थी।
सीख - इस किस्से में गांधी जी ने संदेश दिया है कि हमें परमात्मा की शक्ति पर भरोसा रखना चाहिए। जब कभी ऐसी स्थिति आए कि हम कहीं चूक रहे हों या कोई गलती कर रहे हों तो भगवान किसी न किसी रूप में हमें समझाता जरूर है और हमारी रक्षा करता है। भगवान हमें सही रास्ता जरूर दिखाते हैं।
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