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तपस्या हमें ही करनी है और अनुशासन भी हमें ही रखना है

कहानी - आज (12 जनवरी) स्वामी विवेकानंद की जयंती है। उनसे जुड़ा एक किस्सा है। घटना उस समय की है, जब वे स्वामी विवेकानंद नहीं, नरेंद्रनाथ के रूप में जाने जाते थे।

नरेंद्रनाथ जब अपने घर से किसी धार्मिक कार्य के लिए निकलते थे तो उन्हें एक ऐसे मोहल्ले से गुजरना पड़ता था, जहां वैश्याएं रहती थीं। वैश्याएं घर के बाहर सड़क पर अपनी गतिविधियां करती थीं तो युवा नरेंद्रनाथ को बहुत शर्म आती थी। इस वजह से उन्होंने उस रास्ते से गुजरना ही छोड़ दिया। अब वे एक बहुत लंबे रास्ते से होकर अपनी मंजिल तक पहुंचते थे।

कुछ दिनों के बाद जब वे विवेकानंद के रूप में प्रसिद्ध हो गए तो और ज्यादा प्रतिष्ठा का सवाल था, इस वजह से वे उस मोहल्ले से गुजर नहीं सकते थे, लेकिन एक दिन अचानक उनके मन में विचार आया कि मैं उस मोहल्ले से क्यों नहीं गुजर सकता। अब मेरे मन में किसी भी स्त्री के लिए कोई भेदभाव होना ही नहीं चाहिए।

स्वामी जी ने सोचा कि दरअसल, वैश्याओं की गतिविधियों के लिए मेरे मन में कहीं न कहीं एक आकर्षण है। मेरी वासना उस आकर्षण की ओर मेरे मन को ले जाती है। मोहल्ले में कोई खराबी नहीं है, बात मेरे आकर्षण के भाव की है। मुझे ये आकर्षण खत्म करना चाहिए। इसके बाद मेरे मन में किसी के लिए कोई फर्क नहीं रहेगा। मैं कहीं से भी जा सकता हूं।

इस विचार के बाद से स्वामी जी ने उस मोहल्ले से गुजरना शुरू कर दिया। सारी वैश्याएं स्वामी जी को देखतीं, लेकिन स्वामी जी की उपस्थिति में वैश्याएं नतमस्तक हो जातीं और मर्यादित हो जाती थीं। धीरे-धीरे स्वामी जी को ये लगना ही बंद हो गया कि ये वैश्याओं का मोहल्ला है। उनके मन से सभी तरह के भेदभाव ही खत्म हो गए।

सीख - स्वामी जी हमें शिक्षा दी है कि तपस्या हमें ही करनी है, अनुशासन भी हमें ही रखना है। हमारे मन के बुरे विचार ही बाहर की बुराई हमें ज्यादा दिखाते हैं। अगर हम नियंत्रण में है तो बाहर की बुरी बातें भी हमें प्रभावित नहीं कर पाती हैं।

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