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युवा दिवस आज:ये हैं मददगार युवा; बेटियों की शादी में आर्थिक सहायता से लेकर बच्चियों को गोद लेकर पढ़ाई तक करवा रहे हैं

शहर में कई युवा अपने कारोबार-व्यापार के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी निभा रहे। - Dainik Bhaskar

शहर में कई युवा अपने कारोबार-व्यापार के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी निभा रहे।

राष्ट्रीय युवा दिवस पर किस्से ऐसे युवाओं के, जिन्होंने हर जरूरतमंद को परिवार से बढ़कर माना और दिन-रात सेवा में जुट गए। कोई क्राउड फंडिंग के माध्यम से एनजीओ और संस्थाओं तक आर्थिक सहायता पहुंचा रहा तो कोई बेटियों की शादी में गृहस्थी के सामान देने से लेकर बच्चियों को गोद लेकर पढ़ाई कराने तक का काम कर रहे हैं।

शादियों में पहुंचा रहे गृहस्थी का सामान

छोटा बांगड़दा में रहने वाले 25 वर्षीय अमन मेहता। अब तक 18 बार रक्तदान कर चुके हैं। जरूरतमंद बेटियों की शादी में गृहस्थी का सामान दे रहे तो लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं। दिव्यांगों को इलाज के लिए भी लगातार काम कर रहे हैं। कोरोना में खुद के खर्च से 1500 लोगों को फूड पैकेट का वितरण भी किया। अब सोशल इंदौरी फाउंडेशन बनाया, जिसमें 25 लोग जुड़ चुके हैं।

आदिवासी महिलाओं तक पहुंचा रहे सहायता

26 वर्षीय केतन भंडारी। कोरोना के दौरान लगातार जरूरतमंदों तक फूड पैकेट पहुंचाए। राशन किट का वितरण किया। ऑनलाइन क्राउड फंडिंग के माध्यम से एक करोड़ रुपए जुटाए। अलग-अलग संस्थाओं, एनजीओ तक यह राशि पहुंचाई। इस राशि से लोगों को अलग-अलग मदद मिली। इन रुपयों से एनजीओ के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं को सेनेटरी पैड भी पहुंचाए।

थैलेसीमिया पीड़ितों को ब्लड उपलब्ध करा रहे

24 वर्षीय शशिकांत लतार। बिलासपुर जिले के एक गांव से पढ़ने के लिए इंदौर आए थे। पढ़ाई के साथ सेवा कार्यों में जुट गए। ब्लड डोनेशन ग्रुप से भी जुड़े। अब यहीं रहकर थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को ब्लड उपलब्ध करवा रहे हैं। इसी के साथ दिव्यांगों को कृत्रिम पैर भी लगवाने में मदद कर रहे हैं। शशिकांत कहते हैं अब इंदौर ही मेरा घर है, यहीं रहकर लोगों की सेवा करूंगा।

कोरोना में जिन्होंने माता व पिता को खोया, उन्हें पढ़ा रहे

23 वर्षीय अनुराग सचदेव। कोरोना के दौरान देखा कि कई परिवारों में अब सिर्फ छोटे बच्चे ही बचे हैं। अभिभावकों का आसरा उनके सिर से छिन गया। ऐसी ही कुछ बच्चियों की पढ़ाई में आर्थिक सहायता करते हैं। दो ऐसी बच्चियों को गोद भी ले रखा हैं, जिन्होंने माता-पिता दोनों को खोया है। अब उनकी पढ़ाई से लेकर अन्य जरूरतें पूरे करते हैं। उन्हें रोजाना पढ़ाते हैं। अनुराग कहते हैं कि ऐसे और भी जो बच्चे मिलेंगे, उन्हें पढ़ाई करवाएंगे।

जरूरतमंदों को नि:शुल्क दवाइयां उपलब्ध कराई

24 वर्षीय रोहित ठाकुर। फार्मासिस्ट हैं। एक कंपनी में नौकरी कर रहे थे। कोरोना में देखा कि लोगों को मनमानी दरों पर दवाइयां मिल रही हैं। इसके बाद नौकरी छोड़कर मेडिकल स्टोर खोला। कोरोना की दूसरी लहर में जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर और जिनके पास पैसे नहीं थे, नि:शुल्क दवाइयां भी उपलब्ध करवाईं। इसके अलावा जरूरतमंदों मरीजों के लिए इलाज में भी मदद की।

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