Header Ads Widget

Responsive Advertisement

GST में बदलाव का असर:10 और 20 तारीख तक भरे गए टैक्स में अंतर आया तो सीधे खाते से वसूली; विक्रेता की चूक का खामियाजा क्रेता को भुगतना पड़ेगा

 

टैक्स क्रेडिट में 120% तक की छूट भी व्यापारियों के हाथ से फिसली। - Dainik Bhaskar
टैक्स क्रेडिट में 120% तक की छूट भी व्यापारियों के हाथ से फिसली।

जीएसटी में 1 जनवरी से हुए बदलाव से व्यापारियों की परेशानियां और बढ़ गई हैं। अब अब बेचने वाले व्यक्ति की चूक का खामियाजा खरीदार को भुगतना पड़ेगा। इसी के साथ जहां कई अन्य रियायतें कम हो जाएंगी, वहीं जरा-सी तकनीकी या मानवीय त्रुटि व्यापारियों को बहुत भारी पड़ेगी।

केंद्र ने नए साल की शुरुआत में ही व्यापारियों को जोर का झटका दिया है। इनपुट टैक्स क्रेडिट से संबंधित जीएसटी की धारा 16 में सरकार ने जो बदलाव किए, वह व्यापारियों को समझ नहीं आ रहे। संशोधित नियमों के तहत अब पंजीकृत व्यापारी उतने ही इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ ले सकेंगे, जो जीएसटी पोर्टल पर उनके फॉर्म जीएसटीआर-2बी में दर्शाई जा रही है।

यानी कि व्यापारी ने जिस कंपनी या अन्य से माल खरीदा है और यदि उसने (विक्रेता ने) जीएसटी नहीं चुकाया या रिटर्न फाइल नहीं किया तो खरीदार (क्रेता) व्यापारी को इनपुट टैक्स क्रेडिट में छूट नहीं मिलेगी। भले ही खरीदार ने बेचने वाले को पूरा भुगतान कर दिया हो। हालांकि जीएसटी के मूल कानून अनुसार क्रेता व्यापारी को खरीदी बिल के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलना चाहिए।

टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन (जीएसटी ) के सचिव सीए मनोज पी गुप्ता ने बताया यदि विक्रेता कर नहीं चुकाता है तो उसका दंड क्रेता व्यापारिक को देना न्याय संगत नहीं है। साथ ही जीएसटी आर 2ए/2बी में दर्शाए जा रहे इनपुट टैक्स क्रेडिट का 120% तक की छूट का लाभ व्यापारी ले सकते थे, जो अब केवल 2ए/2बी में दर्शाई जा रही राशि के बराबर है।

गलती सुधारने के लिए मौका भी नहीं मिल पाएगा

संशोधित नियमों के तहत व्यापारिक माह में हुई बिक्री की जानकारी फॉर्म जीएसटीआर-1 में देता है। यह फॉर्म अगले माह के 10 तारीख तक भरा जाएगा। वहीं इनपुट टैक्स क्रेडिट और कर के दायित्व की जानकारी फॉर्म जीएसटीआर 3बी में दी जाना है जो 20 तारीख तक भरा जा सकता है।

अब इन दोनों फॉर्म में कर राशि में अंतर आया तो जीएसटी विभाग व्यापारी को सूचना या भूल सुधार का मौका दिए बिना सीधे उसके बैंक खाते से वसूली कर लेगा। यानी तकनीकी या मानवीय त्रुटि से जीएसटीआर -1 और 3बी में अंतर आया तो यह त्रुटि व्यापारी पर भारी पड़ेगी।

फूड डिलीवरी : एक को उपहार तो दूसरे को भार

जनवरी से पहले जो रेस्त्रां फूड डिलीवरी एग्रीगेटर को माल बेचते थे, उन्हें 5% दर से टैक्स चुकाना होता था, लेकिन ऐसे कई रेस्त्रां हैं जो जीएसटी में पंजीकृत नहीं हैं। ऐसे में न वो जीएसटी चुकाते थे और न फूड डेलीवरी एग्रीगेटर। ऐसे मामलों में जीएसटी चुकाने का दायित्व फूड डिलीवरी एग्रीगेटर पर डाल दिया है।

ऐसे विक्रय पर रेस्त्रां को कोई कर नहीं चुकाना होगा लेकिन ऐसे विषय पर रेस्त्रां को कोई कर नहीं चुकाना होगा लेकिन एग्रीगेटर पर बोझ जरूर आएगा। हालांकि यह अच्छा कदम कहा जा सकता क्योंकि इससे राजस्व बढ़ेगा। रिफंड के लिए भी आधार अनिवार्य किया है जो कि अच्छा निर्णय है।

कॉन्ट्रैक्ट: 6% बढ़ाया जीएसटी

1 जनवरी से पहले गवर्नमेंट अथॉरिटी या गवर्नमेंट एंटीटी को किसी निर्माण के कॉन्ट्रैक्ट पर 12% दर से जीएसटी देना होता था, अब यह दर बढ़ाकर 18% कर दी है। यानी गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्टर्स को अब 6% अधिक कर चुकाना होगा। इससे उन्हें बड़ी मात्रा में करंट कैपिटल की जरूरत पड़ेगी क्योंकि सरकारी विभागों से भुगतान बहुत देरी से होता।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ