Header Ads Widget

Responsive Advertisement

कंकालों की गोशाला:न चारा, न पानी; तीन गोशालाओं में 1 साल में 544 गायें मरीं, जो जिंदा वो बीमार या कमजोर

 

जीव दया गोरक्षक गोशाला के पास। - Dainik Bhaskar
जीव दया गोरक्षक गोशाला के पास।

शहर के आसपास स्थित गोशालाओं की तस्वीर एक सी है। गायों के लिए न पीने को पानी है, न चारा। तीन गाेशालाओं की जब पड़ताल की तो यह हकीकत सामने आई कि यहां एक साल में करीब 544 गायों की मौत हो चुकी है। इधर, बैरसिया के बसई गांव में प्रशासन का अमला दिनभर जुटा रहा।

एसडीएम आदित्य जैन ने बताया कि यहां कि 370 गायों को आसपास की 4 गोशालाओं में शिफ्ट किया जाएगा। इधर, पुलिस को 87 गोवंश के शव मिले हैं। जिसमें 42 कंकाल थे। जबकि 45 गोवंश में से केवल 9 शव के ही पोस्टमार्टम हो सके। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस इस मामले में आगे की कार्रवाई करेगी।

महामृत्युंजय गाेशाला से विवेक राजपूत

रोजाना 2000 रुपए की जरूरत, लेकिन मिल रहे सिर्फ 250 रुपए

नीलबड़ से आगे मुगालियाछाप गांव के बाहर बनी महामृत्युंजय गोशाला। यहां 75 गाय रखने की क्षमता है। लेकिन एक ही शेड में 100 से ज्यादा गायें हैं। सभी की हालत नाजुक है। 1 साल में यहां 22 गायों की मौत हो चुकी हैं। शेड के नीचे एक-डेढ़ फीट तक गहरे गड्ढे हैं, यहीं गायों को बांधकर रखा जाता है। खाने के नाम पर सूखी घास और भूसा खिलाया जाता है, इसकी क्वालिटी भी अच्छी नहीं है।

यहां के कर्मचारियों की मानें तो डॉक्टर आए थे और इंजेक्शन लगाकर गए हैं। गोशाला संचालित करने वाली समिति के पदाधिकारियों की मानें तो सरकार की ओर से हर गोवंश के 20 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अनुदान दिए जाने का प्रावधान है। ऐसे में 100 गाय के हिसाब से रोज 2000 रुपए अनुदान के रूप में मिलना चाहिए। लेकिन, 1 साल में महज 91,600 रुपए अनुदान मिला है। इस तरह एक दिन के लिए 250.95 रुपए मिले हैं।

राधाकृष्ण गोशाला से कैलाश पाटीदार

पहले हर महीने एक दौरा, अब 1 दिन में दो बार देख गए डॉक्टर

शहर से 30 किमी दूर बैरसिया रोड पर बसा कुठार गांव। यहां पर है राधाकृष्ण गोशाला। अभी यहां 105 गायें हैं। इन्हें एक ही शेड के नीचे रखा जा रहा है। गांव के सरपंच मुकेश अहिरवार बताते हैं कि सरकार से 5 महीने से फंड नहीं मिला है। सिर्फ 7 दिन का भूसा बचा हुआ है।

गांव के लोगों ने बताया कि अक्टूबर 2020 से अब तक 120 गायों की मौत हो चुकी है। इसमें ज्यादातर बीमार थीं। बसई में गायों की मौत का मामला सामने आने के बाद आनन-फानन में पशु चिकित्सकों ने यहां पर एक दिन में दो बार दौरा कर लिया। जबकि पहले यहां हर महीने में एक बार ही पशु चिकित्सक दौरा करते थे।

जीव दया गोशाला से भीम सिंह मीणा

गोशाला से थोड़ी दूर गायाें के कंकाल या पॉलीथिन के गुच्छे

शहर से 40 किमी दूर विदिशा रोड स्थित जीव दया गोरक्षक गोशाला में करीब 2000 गाय हैं। एक साल में यहां करीब 400 गाय की मौत हो चुकी है। इनमें से 85% गाय नगर निगम ने यहां भेजी थीं। मैनेजर रामदयाल नागर बताते हैं कि ये गायें पॉलीथिन खाने से मर गईं। इसकी पुष्टि गोशाला से थोड़ी दूर बने गायों के श्मशान से होती है। यहां या तो गायों के कंकाल थे या फिर पॉलीथिन के गुच्छे।

हालांकि बसई घटना के बाद यहां के कर्मचारी अलर्ट हैं। यहां गायों के लिए तीन बाड़े बनाए गए हैं। पहले बाड़े में रखी गईं गायें महीनों पुराना पानी पीने को मजबूर हैं। नागर ने बताया कि ट्यूबवेल में पानी नहीं है और गड्‌ढा भी सूख गया। बिजली लाइन काट दी गई है। इसी बाड़े में गाएं रात गुजारती हैं और सुबह इन्हें दूसरे बाड़े में छोड़ दिया जाता है। यह ऊपर से खुला है। तीसरा बाड़ा- व्यवस्थित बना हुआ है। इसमें गर्भवती और दुधारू गायों को रखा जाता है। इस गोशाला में 20 कर्मचारी हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ