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कुंभ संक्रांति 13 को:इस सूर्य पर्व पर अर्घ्य देने से बढ़ती है याददाश्त, स्नान-दान से खत्म होती हैं बीमारियां और परेशानियां

13 फरवरी, रविवार को सूर्य मकर से कुंभ राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के राशि बदलने को ही ज्योतिष में संक्रांति कहा जाता है। हर महीने सूर्य के राशि बदलने से साल में 12 संक्रांतियां होती हैं। उनमें सभी का अलग महत्व होता है। इसके बाद सूर्य 14 मार्च को राशि बदलकर मीन में चला जाएगा। रविवार का स्वामी सूर्य होता है और इस बार कुंभ संक्रांति रविवार को है। इसलिए इस पर्व का शुभ और बढ़ जाएगा।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य पूजन कर अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा करने से सफलता प्राप्त होती है। अर्क पुरार्ण के मुताबिक सूर्य भगवान की पूजा से परिवार में किसी भी सदस्य पर कोई मुसीबत या रोग नहीं आता। उम्र बढ़ती है और साथ ही भगवान आदित्य के आशीर्वाद से जीवन के अनेक दोष भी दूर हो जाते हैं। इससे प्रतिष्ठा और मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है। इस दिन खाद्य वस्तुओं, वस्त्रों और गरीबों को दान देने से दोगुना पुण्य मिलता है।

कुंभ संक्रांति मुहूर्त

13 फरवरी, रविवार
शुभ मुहूर्त: सुबह 7:00 से दोपहर 12:35 तक (5 घंटे 34 मिनट)
महापुण्य काल: सुबह 7:00 से 8:55 तक (1 घंटा 53 मिनट)

कुंभ संक्रांति
ज्योतिष शास्त्र मे सूर्य को सभी ग्रहों का पिता माना गया है। सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन स्थिति द्वारा ही जलवायु और ऋतुओं में बदलाव होता है। सूर्य की स्थिति अथवा राशि परिवर्तन ही संक्रांति कहलाती है। हिन्दू धर्म मे संक्रांति का अत्यंत महत्व है। संक्रांति पर्व पर सूर्योदय से पहले स्नान और विशेषकर गंगा स्नान का अत्यंत महत्व है। ग्रंथों के अनुसार संक्रांति पर्व पर स्नान करने वाले को ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। देवी पुराण में कहा गया है कि संक्रांति के दिन जो स्नान नहीं करता वो कईं जन्मों तक दरिद्र रहता है। संक्रांति के दिन दान और पुण्य कर्मों की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

कुंभ संक्रांति का अर्थ
सूर्य गतिमान है और ज्योतिष के मुताबिक ये एक रैखिक पथ पर गति कर रहा है। सूर्य की इस गति के कारण ये अपना स्थान परिवर्तन करते रहते हैं। साथ ही विभिन्न राशियों में गोचर होते हैं। सूर्य किसी भी राशि में करीब एक माह तक रहता है और उसके बाद दूसरी राशि में प्रवेश कर जाते हैं। जिसे हिन्दू पंचांग और ज्योतिष शास्त्र मे संक्रांति की संज्ञा दी गयी है।
मकर संक्रांति के बाद सूर्य मकर से कुंभ राशि में प्रवेश कर जाते हैं जिसे कुंभ संक्रांति कहा जाता है। हिन्दू धर्म में कुंभ और मीन संक्रांति को भी महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि इस समय में ऋतु परिवर्तन भी होता है और उसके बाद हिंदू नववर्ष शुरू हो जाता है। कुंभ संक्रांति पर स्नान-दान का विशेष महत्व है।

कुंभ संक्रांति का महत्व
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा अमावस्या और एकादशी तिथि का जितना महत्व है उतना ही महत्व संक्रांति तिथि का भी है। संक्रांति के दिन स्नान ध्यान और दान से देवलोक की प्राप्ति होती है। कुंभ संक्रांति के दिन सुबह उठकर नहाने के पानी मे तिल जरूर डाल दें। नहाने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। उसके बाद मंदिर जाकर श्रद्धा अनुसार दान करें। अपनी इच्छा से ब्राह्मणों को भोजन कराएं। बिना तेल-घी और तिल-गुड़ से बनी चीजे ही खाएं।

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