इंदौर में जिले का लिंगानुपात 2015 के मुकाबले भले ही बेहतर होकर 987 पर पहुंच गया है। बावजूद इसके अभी भी शहर और गांव के बीच बड़ी खाई नजर आती है। जिले के 52 गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या 40 फीसदी से भी कम है। शहरी क्षेत्र के 8 गांव और नगर निगम के 11 वार्डों की स्थिति भी ऐसी ही है।
सरकारी आंकड़े ही ये आंख खोलने वाली सच्चाई बयां कर रहे हैं। विशेषज्ञों को अंदेशा है कि बेटियों की इतनी कम संख्या इस बात का इशारा करती है कि भ्रूण लिंग की जांच, गर्भपात के खिलाफ सरकारी सख्ती कारगर नहीं हो रही है। जिले की कुल जनसंख्या में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या प्रति एक हजार 2015-16 में 895 थी, जो 2020-21 में 987 (प्लस 92) हो गई है।
प्रदेश का लिंगानुपात इस दौरान 970 था। इसी तरह जन्म के समय बच्चों का सेक्स रेशो भी 2015-16 में 849 था, जो 2020-21 में 996 (प्लस 147) हो गया है। प्रदेश में यह आंकड़ा अभी 956 है। महिला एवं बाल विकास विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, सांवेर ब्लॉक के 18, देपालपुर के 15, महू के 11 गांव और इंदौर के 8 गांव के साथ शहर के 11 वार्ड में बेटों के मुकाबले बेटियों की संख्या कम पाई गई है। इसे देखते हुए विभाग अब बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ आंदोलन को नए सिरे से चलाने का दावा कर रहा है।
इंदौर ग्रामीण के 8 गांव भी शामिल
जंबूड़ी हप्सी, नावदापंथ, बिसनावदा, तिल्लौर बुजुर्ग, बिहाड़िया, मुंडला दोस्तदार, रालामंडल, दूधिया।
शहर के ये 11 वार्ड भी
वार्ड 26, 46, 45, 67, 68, 47, 56, 5, 39, 31 व 40 में भी यही हाल है।
अब डेटा के आधार पर कारणों की जांच करेंगे
जिले के औसत लिंगानुपात में सुधार हुआ है। यानी हमारी कोशिशें असर दिखा रही हैं। कुछ इलाके हैं, जहां अभी और काम करने की जरूरत है। वहां हमने अपनी आंगनबाड़ियों का डेटा लिया है। संस्थागत प्रसव कहां कम हैं, उनकी जांच कराएंगे। अगले वित्तीय वर्ष में इन आंकड़ों काे आधार बनाकर पूरा फोकस इन गांवों पर ही किया जाएगा। विशेष जागरूकता अभियान चलाएंगे ताकि यहां भी स्थिित बदल सके। - रामनिवास बुधोलिया, असिस्टेंट डायरेक्टर, महिला एवं बाल विकास विभाग
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