रालामंडल अभयारण्य में जंगली जानवरों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। कृष्णमृग (ब्लैकबक) और चीतल की संख्या चिड़ियाघर से भी ज्यादा हो गई है। तेंदुआ परिवार को भी रालामंडल रास आ गया है। दो शावक और नर, मादा तेंदुआ ने एनिमल जोन को अपना घर बना लिया है। मोर, खरगोश, सेही, जंगली सूअर भी काफी हो गए हैं। रालामंडल के भीतर चीतल, कृष्णमृग को भोजन के लिए दाल, मक्का भी उगाई जा रही है।
जगह-जगह पानी के कुंड बने होने से इन्हें प्यास बुझाने के लिए भी भटकना नहीं पड़ रहा है। डियर सफारी एरिया इनके लिए किसी खुले जंगल से कम नहीं है। जू में कृष्णमृग 35 व चीतल 50 के करीब हैं, जबकि रालामंडल में कृष्णमृग 50 और चीतल 72 से ज्यादा है। नीलगाय भी 75 से अधिक हैं। जू में इनकी संख्या करीब 35 है। जू में जंगली जानवरों की संख्या करीब 650 है।
रालामंडल में करीब साढ़े 7 सौ जानवर
- तेंदुआ - 04
- नीलगाय - 75
- लकड़बग्घा - 20
- लोमड़ी - 08
- चीतल - 72
- जंगली सूअर - 30
- सियार - 15
- चिंकारा - 02
- भेड़की - 05
- मोर - 500
अभयारण्य पर्यटकों के लिए पूरी तरह सुरक्षित
रालामंडल अधीक्षक दिनेश वास्कले के मुताबिक जानवरों की संख्या भले ही बढ़ती जा रही है, लेकिन इससे किसी पर्यटक को खतरा नहीं है। अभयारण्य में एनिमल जोन को अलग रखा हुआ है। जंगली जानवर पर्यटकों वाले हिस्से में नहीं आते हैं। चीतल, सांभर भी पर्यटकों को दूर से ही दिखते हैं।
247 हेक्टेयर में फैला अभयारण्य
रालामंडल अभयारण्य 247 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इसमें एनिमल जोन को अलग किया हुआ है। इस हिस्से में पर्यटकों काे प्रवेश नहीं दिया जाता है। पर्यटकों के लिए पहाड़ी पर जाने के लिए केवल एक रास्ता है। एनिमल जोन में केवल विभाग का स्टाफ ही कोई कारण हो तो प्रवेश करता है। वहीं जू 52 एकड़ में फैला हुआ है।
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