कहानी: साईं बाबा के पास जो भी व्यक्ति अपनी समस्याएं लेकर आता था तो वे उससे कहते थे कि सब अच्छा हो जाएगा। वे सिद्ध पुरुष थे तो उन्हें वाक् सिद्धि हो गई थी। उनकी कही हुई बातें सही हो जाती थीं। धीरे-धीरे लोग मानने लगे थे कि अगर इनका हाथ सिर पर आ जाए या ये अच्छा बोल देंगे तो वैसा ही हो जाएगा। बड़ी संख्या में लोग इन्हें घेरे रहते थे। साईं बाबा का एक ही काम था लोगों का भला करना। भलाई के बदले वे लोगों से कभी कुछ मांगते नहीं थे।
उस समय वहां एक कुलकर्णी नाम के ज्योतिषी थे। कुलकर्णी जी भी लोगों को सुखी होने के उपाय बताया करते थे, लेकिन इस सेवा के बदले उन्हें धन मिले, उनकी ऐसी इच्छा होती थी। इस कारण वे साईं बाबा से अहसमत थे और ईर्ष्या भी रखते थे। धीरे-धीरे साईं बाबा का व्यवहार देखकर वे भी उनके भक्त हो गए।
एक दिन कुलकर्णी जी ने साईं बाबा के सम्मान में एक भोज रखा और बाबा को आमंत्रित किया। साईं बाबा ने कहा, 'तुम दिनभर लोगों को भोजन कराओ, मैं भी आ जाऊंगा।' कुलकर्णी दिनभर भोजन कराते रहे, अच्छे-अच्छे लोग आते रहे। वहां एक भिखारी भी आया। कुलकर्णी जी ने उस भिखारी से कहा, 'इन सभी के बीच से अलग हटो, मैंने अन्नक्षेत्र खोला है, लेकिन भिखारियों के लिए स्थान दूसरा है।'
उस भिखारी ने कहा, 'यहीं दे दो, मैं यहीं बैठ जाऊंगा।' कुलकर्णी जी ने उस भिखारी को धक्के देकर बाहर निकाल दिया और कह दिया, 'अब तूझे यहां खाना नहीं मिलेगा।' भोज चलते-चलते रात हो गई और कुलकर्णी जी इंतजार करते रहे, लेकिन साईं बाबा नहीं आए। वे रात में साईं बाबा के पास पहुंचे और पूछा, 'आप भोज में आए नहीं?'
साईं बाबा बोले, 'मैं तो आया था और वहां से भूखा लौट आया।' ये बात सुनते ही कुलकर्णी जी को याद आया और वे बोले, 'कहीं आप?' बाबा ने कहा, 'हां, मैं वही भिखारी था। देखो भाई, जब अन्नदान करो तो भेदभाव न करें। भूख सबकी एक जैसी होती है। मैं सिर्फ यही देखने आया था कि तुम अन्न दान सेवा के लिए कर रहे हो या सेवा के लिए।'
सीख
साईं बाबा ने यहां एक संदेश दिया है कि अगर हमारे पास कोई योग्यता है, धन-संपत्ति है तो उसका उपयोग अहंकार के साथ नहीं करना चाहिए। लोगों की सेवा नि:स्वार्थ भाव से करनी चाहिए।
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