कहानी - संत रविदास से जुड़ा किस्सा है। एक दिन उनका एक शिष्य उनसे शिकायत कर रहा था, 'रामजतन नाम का एक व्यक्ति अक्सर अपने जूते सिलवाने आता है और आप उसका काम करते हैं। आप जब बाहर गए थे तो रामजतन का काम मैं कर रहा था। काम के बदले उसने मुझे जो सिक्के दिए थे, वे सब खोटे थे। मैंने सिक्के पहचान लिए और सिक्के लौटाते हुए उसे डांट भी लगाई। मैंने उसे कहा कि मैं तुम्हारे जूते नहीं सिलूंगा और उसके जूते उसे लौटा दिए।'
संत रविदास बोले, 'मेरी तो तुम्हें ये सलाह है कि तुम्हें उसके जूते सिल देना चाहिए थे। मैं तो ऐसा ही करता हूं। मैं ये जानता हूं कि हर बार वह मुझे खोटे सिक्के ही देकर जाता है।'
शिष्य ये सुनकर चौंक गया। उसने कहा, 'आप ऐसा क्यों करते हैं?'
संत रविदास कहते हैं, 'अपने द्वार वह आता है, मुझे नहीं मालूम कि वह ऐसा काम क्यों करता है, वह खोटे सिक्के देता है, मैं रख लेता हूं। मेरा काम मैं ईमानदारी से कर देता हूं।'
शिष्य ने पूछा, 'आप उन खोटे सिक्कों का क्या करते हो?'
संत रविदास बोले, 'मैं उन सिक्कों को जमीन में गाढ़ देता हूं, ताकि वह व्यक्ति इन सिक्कों से किसी और न ठग सके। कम से कम ये भी एक सेवा है।'
सीख - हमें भी ये बात समझनी चाहिए कि हमारे आसपास कई लोग ऐसे हैं, जो गलत काम करते हैं। बुरे लोग बुरे काम ही करते हैं। हमें ये तय करना है कि हम अपनी अच्छाई से बुरे कामों को कैसे रोक सकते हैं।
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