कहानी:वसुदेव जी का विवाह देवकी से हो गया था। देवकी कंस की चचेरी बहन थीं। अपनी बहन के विवाह पर कंस बहुत खुश था। उसने घोषणा की थी कि मैं देवकी के दहेज का सामान अपने रथ पर रखूंगा और बहन-बहनोई को विदा करूंगा।
विवाद के बाद रथ पर कंस, देवकी और वसुदेव बैठ गए और चल दिए। कंस खुशी-खुशी बहन-बहनोई को छोड़ने जा रहा था। उसी समय रास्ते में आकाशवाणी हुई कि जिस बहन के विवाह पर तू इतना खुश है, उसकी आठवीं संतान तेरी मृत्यु का कारण बनेगी।
कंस राक्षस वृत्ति का इंसान था। उसने जैसे ही आकाशवाणी सुनी, उसके अंदर का राक्षस जाग गया। नव वधू बनी अपनी बहन के बाल पकड़े और नीचे गिरा दिया। कंस ने तलवार निकाली और देवकी को मारने ही वाला था, तभी वसुदेव सामने आ गए और कहा, 'इसे क्यों मार रहे हो? आप समझदार हैं, आकाशवाणी हुई है कि इसकी आठवीं संतान आपकी मृत्यु का कारण बनेगी, ये तो नहीं है। हम वचन देते हैं, हम आपको हमारी आठों संतान सौंप देंगे।'
ये सुनकर कंस ने उन्हें कारागृह में डाल दिया।
सीख
जो लोग रिश्तों को गहराई से नहीं समझते हैं, वे कंस की तरह व्यवहार करते हैं। थोड़ी देर पहले जो अपनी बहन के विवाह पर खुश था, वही कंस थोड़ी देर बाद उसे मारना चाहता था। राक्षस वृत्ति, स्वार्थ और लालच जैसी बुराइयां घर-परिवार में आ जाती हैं तो रिश्ते लेन-देन, लाभ-हानि के आधार पर निभाए जाते हैं। हमें रिश्ते कंस वृत्ति से न निभाएं। कृष्ण वृत्ति से निभाएं, जिसमें प्रेम ही प्रेम है, देना ही देना है।
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