कहानी - रामायण में युद्ध से पहले का किस्सा है। श्रीराम ने ये तय कर दिया था कि अंगद को रावण के दरबार में दूत बनाकर भेजा जाएगा। लंका के दरबार में जाने से पहले अंगद हनुमान जी के पास पहुंचे।
अंगद हनुमान जी के भक्त भी थे और उन्हें गुरु भी मानते थे। अंगद ने हनुमान जी से कहा, 'आप तो पहले लंका जा चुके हैं और मैं अब जा रहा हूं। आप बताइए, मुझे वहां जाकर क्या और कैसे करना चाहिए?'
हनुमान जी ने समझाते हुए कहा, 'जो भी काम करो, उसकी चर्चा हमेशा होनी चाहिए। पराक्रम ऐसा होना चाहिए, जो प्रतिष्ठित हो।'
अंगद ने हनुमान जी बातें ध्यान से सुनी और फिर सोचते रहे कि इन बातों का सही अर्थ क्या होगा। कुछ समय बाद रावण अंगद के सामने खड़े थे। रावण लगातार अंगद का अपमान कर रहा था।
रावण ने धर्म की दुहाई देते हुआ कहा, 'मैं धर्म जानता हूं, इसलिए तुमसे कह रहा हूं, तुम्हारा पिता बालि मेरा मित्र था। तुम अपने कुल की प्रतिष्ठा नष्ट कर रहे हो। जिस राम के साथ तुम हो, उसके पास है क्या? डरपोक विभीषण, तुम और सुग्रीव जैसे बंदर, हारा और थका हुआ भाई, स्वयं वनवासी राम। तुम क्या मुकाबला करोगे हमारा। हां, एक बंदर जरूर बलवान है, जो पहले आया था, जिसने लंका जलाई थी। वह जरूर तुम्हारे पक्ष में बलशाली है।'
ये बात सुनते ही अंगद समझ गए कि हनुमान जी ने कहा था कि जो काम, वह इस तरीके से करो कि दुनिया उसे कई साल तक याद रखे। हनुमान जी लंका जलाकर गए तो रावण आज तक उन्हें याद कर रहा है।
सीख - इस कहानी ने हमें सीख दी है कि हमें हमेशा अच्छे काम करना चाहिए। काम इस ढंग से करें कि लोग हमें और हमारी सफलता को हमेशा याद रखें।
0 टिप्पणियाँ